दीपों के पर्व दिवाली को अब महज चंद दिन ही शेष बचे हैं। हिंदू धर्म में दिवाली के अलावा देव दिवाली (Dev Diwali 2024) भी मनाई जाती है। दिवाली और देव दीपावली दोनों ही भारत में मनाये जाने वाले महत्वपूर्ण त्यौहार हैं। पांच दिनों तक मनाये जाने वाले पर्व की शुरुआत धनतेरस से हो जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, दिवाली हर साल कार्तिक माह की अमावस्या के दिन मनाई जाती है। वहीं हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाने की परंपरा है।
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कब है दिवाली
दिवाली 31 अक्टूबर को मनाई जायगी। इसके ठीक 15 दिन बाद देव दिवाली मनाई जाती है। दीवाली की तरह इस दिन भी घर को दीपों और झालरों से जगमग किया जाता है। आइए जानते हैं इस साल देव दिवाली कब है इसे क्यों मनाई जाती है।
इस डेट को मनाई जाएगी देव दिवाली
पंचांग के मुताबिक, इस साल देव दिवाली 15 नवंबर दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। 15 नवंबर को दोपहर 12 बजे कार्तिक पूर्णिमा तिथि शुरू होगी और 16 नवंबर को शाम 5:10 बजे समाप्त होती है।
इस दिन देवता मनाते हैं दिवाली
मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवता दिवाली मनाते हैं। यही वजह है कि इस विशेष दिवाली को देव दीपावली कहते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था। इसके बाद सभी देवताओं ने आकाश में दीपक जलाए थे। ऐसा माना जाता है कि त्रिपुरासुर के वध के बाद सभी देवताओं ने स्वर्ग में दिवाली मनाई थी, तभी से इस दिन देव दिवाली मनाने की शुरुआत हुई थी।
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इसी दिन तुलसी विवाह की भी है परंपरा
हिन्दू पंचांग की उदयातिथि के अनुसार, इस साल 15 नवंबर को देव दिवाली मनाई जाएगी। देव दिवाली हमेशा दिवाली के 15 दिन बाद मनाई जाती है। इसके अतिरिक्त कई स्थानों पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी विवाह उत्सव भी मनाया जाता है। इसमें तुलसी जी का भगवान शालिग्राम से विवाह कराने का विधान है।
क्या किया जाता है देव दिवाली पर्व पर
देव दिवाली को भगवान की दिवाली कहा जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन सभी देवता रूपांतरित होकर दिवाली मनाने के लिए पृथ्वी पर आते हैं, इसलिए इस दिन देवताओं के लिए दीपक जलाना चाहिए। वाराणसी में देव दिवाली का विशेष महत्व है।
गंगा घाटों पर जलाए जाते हैं दिए
हर साल देव दिवाली पर वाराणसी में गंगा के सभी घाटों पर लाखों की संख्या में दीप जलाए जाते हैं। देव दिवाली के दिन वाराणसी यानी प्राचीन काशी में अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। इस दिन लोग गंगा के घाटों पर आकर दीपक जलाते हैं और ईश्वर की आराधना करते हैं।
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