




Exam Is An Art: परीक्षा एक कला है जिसमें विद्यार्थी अपने ज्ञान कौशल का प्रदर्शन करता है। वह प्रत्युत्पन्नमति के साथ उत्तर पुस्तिका में जितना अच्छा विषयानुकूल लिखेगा, उसका परिणाम भी उतना ही अच्छा होगा। ज्ञात हो कि परीक्षा में उन्हीं सवालों से सामना होता है जो पाठ्यक्रम में होने के साथ ही कक्षा में पढ़ाया गया है। सवाल है कि परीक्षा कला कैसे है? परीक्षा कैसे दी जाये?
समय प्रबंधन
परीक्षा में विद्यार्थी के पाठ्य विषयों की परीक्षा तो होती है बल्कि उसके साथ ही उसके परीक्षा देने के तरीके की भी परीक्षा होती है। परीक्षा कक्ष में परीक्षार्थी को सबसे पहले अपने निर्धारित समय में योजनाबद्ध तरीके से प्रश्नों के उत्तर लिखना है। लघु, अतिलघु, वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के साथ ही व्याख्यात्मक प्रश्न को निर्धारित समय में लिखना होता है।
लिखावट पर विशेष ध्यान
परीक्षक के सामने परीक्षार्थी नहीं होता है। उसके सामने परीक्षार्थी की उत्तर पुस्तिका होती है। उत्तर पुस्तिका की लिखावट जितनी अच्छी होगी, परीक्षक को उतना अधिक प्रभावित करेगी। परीक्षार्थी को चाहिए कि वह पहले से आखिरी प्रश्न के उत्तर तक लिखावट पर विशेष ध्यान रखें। लिखावट अच्छी रहेगी तो परीक्षक अच्छे अंक देने के लिए तत्पर होगा।
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भाषा-शैली
परीक्षक हमेशा उत्तर पुस्तिका के पहले पन्ने को ज्यादा गहनता से देखता है। पहला पन्ना यदि उसे प्रभावित किया, तो शेष पृष्ठों का मूल्यांकन उसी के आधार पर होगा। परीक्षक देखता है कि परीक्षार्थी का विषय ज्ञान के साथ भाषा और प्रस्तुति शैली समृद्ध है। भाषा और प्रस्तुति की शैली अच्छी है तो परीक्षक अच्छे अंक देगा।
वर्तनी पर नजर
परीक्षक जब उत्तर पुस्तिका का मूल्यांकन करता है, तो सबसे पहले उसकी नजर पहले प्रश्नों उत्तर पर जाती हैं। पहले पृष्ठ का वाक्य विन्यास के साथ वह वर्तनी पर विशेष नजर रखता है। प्रथम पृष्ठ का वाक्य विन्यास अच्छा है और वर्तनी में अशुद्धियां नहीं हैं, तो परीक्षक आश्वत हो जाता है कि परीक्षार्थी में भाषाई दक्षता है।
परीक्षार्थी की दक्षता
परीक्षार्थी को अपने ज्ञान के साथ यह कोशिश करनी होगी की परीक्षक को एहसास करा दिया जाये कि, वह प्रश्नों को अच्छी तरह से जानता है और लिख भी रहा है। समय और लेखन की सीमा में ही उत्तर देना है जिसे परीक्षार्थी कुशलता से कर रहा है।
विषयों की प्रस्तुति
परीक्षार्थी की कोशिश होनी चाहिए कि कथ्य और तथ्य क्रमबद्ध ढंग से प्रस्तुत करे। कथ्य और तथ्यों को छोटे-छोटे विषयों के साथ प्रस्तुत करना होगा। परीक्षार्थी शीर्षक, उपशीर्षक के साथ अंकों को उपयोग करे। परीक्षक मूल्यांकन के दौरान जब उत्तर पुस्तिका में कथ्य और तथ्यों के साथ क्रमवार लेखन पाता है तो वह अच्छे अंक देगा ही।
तनाव को कहें बाय-बाय
परीक्षा तनाव में देंगे तो परीक्षा की प्रस्तुति अच्छी नहीं होगी बल्कि तनाव से बाहर निकल कर परीक्षा देंगे तो परिणाम अच्छा होगा। परीक्षार्थी के तैयारियों की, उसके पाठ्यक्रम की परीक्षा होती है। परीक्षार्थी को तनाव और आत्म विश्वास के बीच से गुजरना होता है। तैयारी अच्छी है तो आत्मविश्वास दिखेगा और तैयारी कमजोर है तो आत्मविश्वास की कमी के साथ तनाव बढ़ेगा। तनाव जितना अधिक होगा, परीक्षा पर उतना ही नकारात्मक असर दिखेगा। परीक्षा को अच्छा बनाने के लिए सकारात्मक भाव लाना होगा।
लिखने की आदत
सामान्यतः विद्यार्थियों में लिखने की आदत कम होती जा रही है। पहले प्रश्नपत्र में समय के अंदर उत्तर लिखना मुश्किल हो जाता है। दूसरे और तीसरे प्रश्नपत्र में कुछ सुधार होता है तब तक परीक्षा अंतिम चरण में पहुंच चुकी होती है। विद्यार्थी को प्रतिदिन आधे घंटे लिखने की आदत डालनी होगी। नियमित लेखन की आदत से ही तीन घंटे की अच्छी परीक्षा दी जायेगी।
अभिभावकों को सलाह
परीक्षार्थी के लिए अभिभावक प्रेरक बनें। परीक्षार्थी पर अनावश्यक दबाव न दें। अभिभावक द्वारा दिया गया अत्यधिक दबाव विद्यार्थी को अवसाद में ले जा सकता है। अवसाद की स्थिति में जाने पर विद्यार्थी का नुकसान हो सकता है। यह नुकसान किसी भी सीमा तक हो सकता है। असफलता के डर से विद्यार्थी कुछ भी गलत निर्णय ले सकता है।
परीक्षार्थी के बने सहयोगी
परीक्षा किसी भी स्तर की हो, उससे पहले दबाव, तनाव की चुनौती होती है। यह दबाव, तनाव और चुनौती मानसिक होती है। विद्यार्थी को मानसिक स्थिति पर मनोवैज्ञानिक सहयोग करना चाहिए। विद्यार्थी को अभिभावक द्वारा मिला संबल उसमें उत्साह का संचार करेगा और परीक्षा भी अच्छी होगी। जिन्दगी और शिक्षक में यही फर्क है। जिन्दगी हमेशा परीक्षा लेती है और शिक्षक पढ़ा कर परीक्षा लेता है। पढ़े हुए पाठ्यक्रम की परीक्षा देना तो जीवन के लिए अच्छा ही है।
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