नई दिल्ली। जून 2020 में पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में हुईं हिंसक झड़प के बाद से भारत और चीन (China) के सबंधों में आई तल्खी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। भारत जहां एक तरफ इस तनाव को डिप्लोमैटिक तरीके से शांत करने का प्रयास कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ चीन बॉर्डर के बाद नजदीक तेजी से निर्माण कार्य कराने में जुटा है।
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इस जगह को लेकर भारत और चीन के बीच है विवाद
एक रिपोर्ट के मुताबिक, हाल ही में प्राप्त हुई सेटेलाइट तस्वीरों में साफ़-साफ दिख रहा है कि ड्रैगन ने पैगोंग झील के निकट उत्तर किनारे पर काफी ज्यादा निर्माण कार्य कर लिया है। रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि साल 2020 में जिस स्थान पर चीन और भारत के जवानों के बीच संघर्ष हुआ था, उस जगह से लगभग 38 किलो मीटर की दूरी पर चीन ने नई कॉलोनी बसा ली है। चीन की ये नई कालोनी लेकन पैंगॉन्ग झील के पास है। इस जगह को लेकर भी चीन और भारत के बीच विवाद है। इस जगह को लेकर दोनों का अपना-अपना मत है। हालांकि ये निर्माण कार्य चीन के स्वामित्व वाले तिब्बत में किया गया है।
100 से अधिक इमारतें बना रहा चीन
रिपोर्ट में बताया गया है कि ये लेटेस्ट तस्वीरें अमेरिकी कंपनी मैक्सार टेक्नोलॉजी ने 9 अक्टूबर 2024 को ली है। इन तस्वीरों में चीन करीब 17 हेक्टेयर जमीन पर निर्माण कार्य करता नजर आ रहा है। यह नई कॉलोनी येमागोऊ रोड के नजदीक होने की संभावना जताई जा रही है, जिसकी ऊंचाई करीब 4347 मीटर है। यानी करीब 14262 फीट। चीन के इस निर्माण कार्य को लेकर तक्षशिला इंस्टीट्यूटशन में जियोस्पेशियल रिसर्च प्रोग्राम की प्रमुख और प्रोफेसर डॉ. वाई नित्यानंदनम का कहना है कि चीन यहां पर 100 से अधिक इमारतें बना रहा है। सेटेलाइट में रिहायशी इमारतें और प्रशासनिक इमारतें दिख रही हैं। संभावना है कि इसके आसपास के खुले इलाकों में वह भविष्य में पार्क या खेलकूद के मैदान जैसी सुविधाओं के भी निर्माण करे।
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भविष्य में बना सकता है हेलीपैड
उन्होंने कहा, इस जगह के दक्षिण-पूर्व में एक 150 मीटर लंबी स्ट्रिप है, आशंका है कि वह वहां पर हेलिकॉप्टर के लिए हेलीपैड का भी निर्माण करे। डॉ. नित्यानंदनम का कहना है कि ऊंचाई पर होने और पहाड़ों के बीच होने की वजह से इस कॉलोनी को अपने आप ही कई खतरों से सुरक्षा मिल जाती है और ये सामान्य तरीके से दिखाई भी नहीं देगी। इस कालोनी को जमीन पर रखे सर्विलांस सिस्टम से भी नहीं देखा जा सकता है। इसे देखने के लिए आसमान में ही जाना पड़ेगा। उन्होंने कहा, हो सकता है कि ये चीन का अस्थाई फॉरवर्ड बेस हो। वह इसे इसलिए बना रहा हो ताकि चीनी सेना का रिएक्शन टाइम कम किया जा सके।
बॉर्डर पर बसा सकता है तिब्बती खानाबदोशों को
इस बारे में अपनी राय रखते हुए भारत-तिब्बत फ्रंटियर के ऑब्जर्वर नेचर देसाई का कहना है कि हो सकता है कि ये कॉलोनी तिब्बती खानाबदोश लोगों के लिए बनाई गई हो। इस जगह का नाम Chanzun Nuru है और ये एक ऐतिहासिक कैंपसाइट है। स्वीडिश जियोग्राफर स्वेन हेडिन के Central Asia Atlas: Memoir of Maps में भी इस जगह का जिक्र है। देसाई ने कहा कि निर्माण का तरीका किसी चीनी स्थाई निर्माण से ज्यादा कंसिसटेंट हैं। दरअसल, चीन की सरकार पिछले दो दशकों से तिब्बती खानाबदोशों के लिए घर बना रही है। इन कालोनियों को जियाकॉन्ग स्टाइल बॉर्डर डिफेंस विलेज के नाम से जाना जाता है। अगर ऐसा है तो ये पैंगॉन्ग झील के पास का सबसे नजदीकी चीनी सेटलमेंट हो जाएगा यानी भारतीय सीमा के निकट चीन ने अपने सबसे वफादार तिब्बती खानाबदोशों को बसा दिया है।
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