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Waqf Bill: वक्फ बिल के कानून बनते ही बदल जाएंगे ये-ये नियम

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नई दिल्ली। Waqf Bill: करीब 12 घंटे की तीखी बहस के बाद लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक 2025 पारित हो गया है। आज इस विधेयक को राज्यसभा में पेश किया जा रहा है और आज ही इसे पारित कर दिया जाएगा। वक्फ विधेयक संपत्तियों के प्रबंधन और विनियमन में कई बदलाव लेकर आया है। यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को सरकारी निगरानी में लाने और पारदर्शिता बढ़ाने पर जोर देता है। विधेयक के कानून बन जाने के बाद भी मुसलमान वक्फ बना सकेंगे, लेकिन सख्त नियमों और शर्तों के साथ। आइए समझते हैं कि इस विधेयक के कानून बन जाने के बाद मुसलमान क्या कर पाएंगे और क्या नहीं कर पाएंगे और इसका  मुस्लिम समुदाय पर क्या असर पड़ेगा।

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अब देना होगा दस्तावेज

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वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 में यूजर द्वारा वक्फ का प्रावधान समाप्त कर दिया गया है। अब केवल वही संपत्ति वक्फ की मानी जाएगी, जो औपचारिक रूप से वक्फ को समर्पित की गई हो (यानी लिखित दस्तावेज या वसीयत के माध्यम से)। लेकिन पहले ऐसा नहीं था। “यूजर द्वारा वक्फ” एक पारंपरिक पद्धति थी, जिसके तहत अगर कोई संपत्ति, जैसे मस्जिद, कब्रिस्तान या दरगाह, जो लंबे समय से मुस्लिम समुदाय द्वारा धार्मिक या सामुदायिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल की जा रही थी, उसे बिना किसी औपचारिक दस्तावेज या घोषणा के भी वक्फ का माना जाता था। यह इस्लामी कानून का हिस्सा था और भारत में वक्फ की पुरानी प्रथा थी, लेकिन लोकसभा में पारित विधेयक में इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है।

जिला कलेक्टर करेंगे वक्फ संपत्ति की जांच

अब अगर कोई जमीन या इमारत सालों से मस्जिद या कब्रिस्तान के तौर पर इस्तेमाल की जा रही है, लेकिन उसके पास वक्फ का कोई कानूनी दस्तावेज नहीं है, तो उसे अब वक्फ का नहीं माना जाएगा। हर वक्फ संपत्ति की जांच जिला कलेक्टर द्वारा की जाएगी। वक्फ बोर्ड बिना सबूत के किसी भी जगह पर दावा नहीं कर सकेगा। इसे एक उदाहरण से समझाते हैं – मान लीजिए किसी गांव में 100 साल से एक जमीन पर कब्रिस्तान है, लेकिन उसे कभी औपचारिक रूप से वक्फ घोषित नहीं किया गया। पहले “वक्फ बाय यूजर” के तहत इसे वक्फ की मान ली जाती थी, लेकिन अब नए कानून के बाद अगर वक्फ बोर्ड के पास इस जमीन का कोई कानूनी दस्तावेज है तो ही इसे वक्फ का माना जायेगा, अन्यथा नहीं। इस जमीन का सही दस्तावेज दिखाने वाला पक्ष इस पर दावा कर सकता है।

संपति दान करने से पहले पूरी करनी होगी शर्त

वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 के तहत अब मुसलमानों को संपत्ति दान करने की शर्त पूरी करनी होगी। गृह मंत्री अमित शाह ने गत दिवस यानी बुधवार को कहा कि ‘वक्फ’ का मतलब है अपनी जमीन, महत्वपूर्ण संपत्ति या संपत्ति को इस्लाम के कल्याण के लिए अल्लाह के नाम पर दान करना। दान सिर्फ अपनी संपत्ति का ही किया जा सकता है, सरकार या किसी और की संपत्ति का नहीं। अब नए प्रावधान के तहत कोई भी मुसलमान जो कम से कम 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहा हो और संपत्ति का कानूनी मालिक हो, वह ही वक्फ के लिए अपनी संपत्ति दान कर सकता है। इससे पहले साल 2013 के वक्फ संशोधन में इस प्रावधान को खत्म कर दिया गया था, जिसे अब फिर से वापस लाया गया है।

महिलाओं को देना होगा हिस्सा

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कहने का मतलब है कि, अगर कोई व्यक्ति 5 साल से कम समय से इस्लाम का पालन कर रहा है, तो अगर वह व्यक्ति धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बन जाता है, तो ऐसी स्थिति में वह अपनी संपत्ति वक्फ को दान नहीं कर सकेगा। इसके लिए उसे 5 साल तक इंतजार करना होगा। वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 में एक नया प्रावधान है जो कहता है कि, अगर कोई मुसलमान अपनी कोई संपत्ति वक्फ को दान करना चाहता है, तो उसे इसकी घोषणा करने से पहले घर की महिलाओं को उनका हिस्सा देना होगा।

 आदिवासियों की जमीन को भी मिली सुरक्षा

इसमें विधवाओं, त कशुदा महिलाओं और अनाथों के लिए भी विशेष प्रावधान किया गया है। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति अपनी 10 बीघा जमीन को वक्फ को देना चाहता है, लेकिन उसकी एक बेटी, एक विधवा बहन और एक अनाथ भतीजा है, तो उसे उनका हिस्सा देना होगा।  पुराने नियम में ऐसा नहीं था। पुराने नियम में वह पूरी जमीन वक्फ को दे सकता था।  इस बार वक्फ में संशोधन करें से पहले यह देखा जाएगा कि, बेटियों, बहनों, पत्नियों, विधवाओं, तलाकशुदा महिलाओं और अनाथों को उनका हिस्सा मिला है या नहीं। अगर नहीं, तो वक्फ मान्य नहीं होगा। वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 में आदिवासियों की जमीन को वक्फ घोषित होने से  पूरी सुरक्षा दी गई है।

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हटाई गई धारा 40 

भारत में आदिवासी समुदायों की जमीन को संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची के तहत चिह्नित और संरक्षित किया गया है। नए नियम के तहत, अगर कोई जमीन आदिवासी समुदाय की है, यानी जो भारतीय संविधान के तहत अनुसूचित जनजातियों के नाम पर दर्ज है या उनके पारंपरिक अधिकार क्षेत्र में आती है, तो वक्फ बोर्ड उस जमीन पर कब्जा नहीं कर सकेगा और न ही कोई मुस्लिम आदिवासी समुदाय की इस जमीन को वक्फ को दान कर सकेगा। वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 में पुराने कानून की धारा 40 को हटाने का प्रस्ताव एक बड़ा बदलाव है। इसे समझने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि, धारा 40 क्या थी और इसके हटने से अब क्या होगा। अधिनियम की धारा 40 में प्रावधान था कि, वक्फ बोर्ड के पास यह तय करने का अंतिम अधिकार था कि, कोई संपत्ति वक्फ की है या नहीं।

ट्रिब्यूनल के निर्णयों के खिलाफ नहीं की जा सकेगी अपील

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वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 40 वक्फ बोर्ड को यह अधिकार देती थी कि अगर उसे लगता है कि कोई संपत्ति वक्फ की है या उसका इस्तेमाल वक्फ के तौर पर किया जा रहा है, तो वह उसकी जांच कर सकता है और उसे अपने कब्जे में ले सकता है। यानी बिना किसी ठोस सबूत या अदालती फैसले के वक्फ बोर्ड खुद तय कर सकता था कि, कोई जमीन या इमारत उसकी है या नहीं। इस अधिनियम  ने बोर्ड को काफी शक्तिशाली बना दिया था। इसका कई बार दुरुपयोग भी हुआ। वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 में इसी धारा-40 को खत्म कर दिया गया है। अब किसी संपत्ति के वक्फ होने या न होने की जांच और निर्णय जिला कलेक्टर या राज्य सरकार के किसी नामित अधिकारी द्वारा किया जाएगा। इस मामले में बोर्ड का निर्णय अंतिम होता था, जब तक कि उसे वक्फ ट्रिब्यूनल द्वारा रद्द या संशोधित न कर दिया जाए। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के अनुसार ट्रिब्यूनल के निर्णयों के खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकती।

विपक्ष ने किया विरोध

अब वक्फ संशोधन विधेयक उन प्रावधानों को हटा देता है, जो वक्फ न्यायाधिकरण के फैसलों को अंतिम बनाते हैं और इसके आदेशों के खिलाफ 90 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। विपक्ष ने इस कदम का कड़ा विरोध किया है, तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि, इस खंड को हटाने से वक्फ बोर्ड “दंतविहीन गुड़िया” बन जाएगा। वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 के तहत, वक्फ संपत्तियों के संबंध में जारी की गई कोई भी घोषणा या अधिसूचना अमान्य होगी। यदि ऐसी संपत्ति ऐसी घोषणा या अधिसूचना के समय प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 या प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत संरक्षित स्मारक या संरक्षित क्षेत्र थी। इसका मतलब यह है कि, एएसआई द्वारा संरक्षित स्मारक अब वक्फ के दायरे से बाहर हो गए हैं। मान लीजिए, कोई पुरानी दरगाह या कब्र एएसआई द्वारा संरक्षित है, लेकिन अगर वक्फ बोर्ड उसे अपनी संपत्ति घोषित करता है, तो नए विधेयक के तहत वक्फ बोर्ड को यह सबूत देना होगा कि संपत्ति वास्तव में उसकी है। उसे उस जमीन के कागजात दिखाने होंगे। अगर सबूत नहीं मिलते हैं और यह एएसआई की सूची में है, तो कलेक्टर इसे वक्फ से हटा देंगे।

जिला कलेक्टर करेंगे विवादों का निपटारा

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बता दें कि, ताजमहल को वक्फ की संपत्ति घोषित करने का प्रयास किया गया था। वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 में, जिला कलेक्टर को वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और विवादों के निपटारे में महत्वपूर्ण अधिकार दिए गए हैं। पुराने वक्फ अधिनियम, 1995 में, जिला कलेक्टर की कोई बड़ी भूमिका नहीं थी। वक्फ बोर्ड खुद ही संपत्ति की जांच करता था, दावे करता था और अपने फैसलों को लागू करता था, लेकिन अब इसमें बदलाव किया गया है। अब कलेक्टर सरकारी संपत्ति की पहचान करेगा और यह तय करेगा कि, कोई संपत्ति वक्फ की है या नहीं। कलेक्टर विवादों का निपटारा भी करेगा। गृह मंत्री ने कहा, किसी संपत्ति को वक्फ घोषित करने का अधिकार समाप्त कर दिया गया है और अब ऐसी घोषणाओं का सत्यापन जिला कलेक्टर द्वारा किया जाएगा।

वक्फ बोर्ड में नियुक्त होंगे गैर मुस्लिम सदस्य

उन्होंने सवाल उठाया कि, कलेक्टर वक्फ की जमीन की जांच का विरोध क्यों कर रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि, वक्फ की जमीन सरकार की है या नहीं, इसकी जांच करने का अधिकार सिर्फ कलेक्टर को है। इस नए विधेयक के मुताबिक समावेशी दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्यों की भी नियुक्ति की जाएगी। केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि, केंद्रीय वक्फ बोर्ड में अधिकतम 4 गैर मुस्लिम (न्यूनतम-2) सदस्य हो सकते हैं। गृह मंत्री अमित शाह के मुताबिक, वक्फ बोर्ड या उसके परिसर में नियुक्त कोई भी गैर मुस्लिम सदस्य धार्मिक गतिविधियों में शामिल नहीं होगा। उनकी भूमिका सिर्फ यह सुनिश्चित करने की होगी कि, दान से जुड़े मामलों का प्रशासन नियमों के मुताबिक चल रहा है।

 

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