



नई दिल्ली। Terrorism And Kashmir: जहां एक तरफ कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए आतंकी हमले से पूरा देश शोक में डूबा है और गुस्से में है। वहीं बीते 35 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है जब कश्मीर में इस कृत्य की निंदा हुई है। हमले के तीन दिन बाद यानी 25 अप्रैल को कश्मीर निवासी मीरवाइज ने श्रीनगर की जामिया मस्जिद में धार्मिक प्रवचन के दौरान घटना की निंदा की।
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बता दें कि, ये वही जामिया मस्जिद है, जहां से कभी अलगाववाद के नारे लगते थे और अलगाववादियों को खुला समर्थन दिया जाता था। यहां, एक दशक पहले तक शुक्रवार यानी जुमे की नमाज के दौरान सेना को अलर्ट कर दिया जाता था क्योंकि अक्सर ऐसा होता था जब जुमे की नमाज के बाद इस मस्जिद से निकलने वाली भीड़ सेना पर पथराव जरूर करती थी। यह मस्जिद पत्थरबाज अलगाववादियों का पुराना ठिकाना हुआ करती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होता। इस बार ऐसा नहीं हुआ। इस बार इस मस्जिद से आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ उठ रही है। साथ ही पहलगाम में हुए आतंकी हमले की निंदा कर रही है।
10 वर्षों में काफी बदला कश्मीर
आपको जानकर ख़ुशी होगी कि बीते 10 सालों में कश्मीर में काफी कुछ बदला है। अब श्रीनगर की जामिया मस्जिद में भी शुक्रवार की नमाज़ शांतिपूर्वक अदा की जाती है और नमाज़ के बाद सभी लोग धार्मिक सद्भाव के साथ अपने-अपने काम पर चले जाते हैं। अब इस मस्जिद को अतिसंवेदनशील की लिस्ट से भी बाहर कर दिया गया है। आप ये भी कह सकते हैं कि, अगर अपवादों को छोड़ दिया जाए, तो अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद के लिए कोई खास जगह नहीं बची है।
कश्मीरियों ने निकाला कैंडल मार्च
पहलगाम की घटना के बाद पूरे भारत में तो विरोध प्रदर्शन हुआ ही, लेकिन कश्मीर भी इसमें पीछे नहीं रहा। यहां भी लोगों ने कैंडल मार्च निकाला और आतंकवाद के खिलाफ अपना विरोध जताया। कश्मीरी नागरिकों ने मशाल जुलूस निकालकर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर किया। इस जुलूस में हिंदू, मुस्लिम और सिख तीनों समुदायों के लोग शामिल हुए। यह एकजुटता दर्शाती है कि, पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में घुसपैठ की अनुमति देना अब नागरिक स्तर पर अस्वीकार्य है। बता दें कि, बीते 35 सालों में ऐसा पहली बार है कि, कश्मीरियों ने इस तरह के आतंकवाद के खिलाफ पूर्ण बंद का ऐलान कर अपनी नाराजगी जाहिर की। हालांकि, यह एकजुटता सभी मुद्दों का समाधान नहीं करेगी, लेकिन यह इस क्षेत्र के लिए उम्मीद की किरण है। कश्मीरियों का ये कदम बता रहा है कि, आने वाले समय में यहां भी अमन चैन की उम्मीद की जा सकती है।
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युवा कश्मीरी बोले- रोजगार पर हमला
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) की रिपोर्ट बताती है कि, 2019 के बाद से कई युवा कश्मीरियों ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की निंदा की और भारत के साथ रहने में अपनी रूचि दिखाई। उनका मानना है कि भारत के साथ उन्हें एक बेहतर भविष्य मिल सकता है। वे पहलगाम हमले को अपनी शांति आकांक्षाओं की सजा के रूप में देखते हैं। उनका मानना है कि, इस बार पाकिस्तान ने उनके रोजगार पर हमला किया है। रिपोर्ट के अनुसार, कश्मीर से स्पेशल राज्य का दर्जा हटने के बाद से पर्यटन में इजाफा हुआ है, जिससे स्थानीय व्यवसाय को प्रगति मिली है और वहां के लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। कश्मीर के युवाओं का कहना है कि, यह हमला उनकी आर्थिक स्थिति पर सीधा प्रहार है। कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा एकीकरण का विरोध करने के बावजूद, ये युवा सतर्क रहते हैं और आतंकवाद के खतरों की पहचान करने में सुरक्षा एजेंसियों की मदद करते हैं।
भारत के साथ आगे बढ़ रहा था कश्मीर
बता दें कि, पहलगाम में आतंकी हमला ऐसे समय में हुआ है, जब कश्मीर भारत के साथ आर्थिक और राजनीतिक रूप से आगे बढ़ रहा था और यहां के लोगों के जीवन स्तर में बदलाव आ रहा था। यहां अनुच्छेद 370 और 35ए हटने के बाद अलगाववाद और आतंकवाद अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया था। 2019 से पहले यानी जब कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत स्पेशल राज्य का दर्जा प्राप्त था, तब यहां आतंकवाद और भ्रष्टाचार अपने चरम पर था। दरअसल, 370 की वजह से क्षेत्रीय दलों को अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ाने में काफी मदद मिल रही थी, लेकिन 2020 से कश्मीरियों ने जो प्रगति शुरू की, उसने 2025 में काफी गति पकड़ी, यहां तक कि विदेशी प्रतिनिधिमंडल और पर्यटक भी कश्मीर की तरफ रुख करने लगे।
कश्मीर में लगे आतंकवाद मुर्दाबाद के नारे
2019 के बाद के सुधारों ने जमात-ए-इस्लामी और जैश-ए-मोहम्मद जैसे सभी पाकिस्तानी गठबंधनों को समाप्त कर दिया और आतंकवादी नेटवर्क को उसके सबसे निचले बिंदु पर ला दिया। हालांकि, आतंकियों ने कोशिश नहीं छोड़ी और कश्मीर टाइगर्स और द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) जैसे नए समूह बना लिए, लेकिन नाममात्र के समर्थन और बढ़े हुए सुरक्षा उपायों के कारण, इन समूहों ने अपनी रणनीति बदल दी और टारगेट किलिंग करने लगे। हालांकि, कश्मीरियों ने घाटी में लक्षित हत्याओं का विरोध किया, उन्हें हिंसा भड़काने का प्रयास माना। पहलगाम हमले के बाद कश्मीर में ही ‘हम हिंदुस्तानी हैं’ और ‘आतंकवाद मुर्दाबाद’ जैसे नारे लगे, जिससे पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठन बौखला गए। दबाव में आकर द रेजिस्टेंस फ्रंट,जिसने पहले हमले की जिम्मेदारी ली थी, लेकिन कुछ ही समय बाद वह भी मुकर गया।
पाकिस्तान ने की भ्रामक खबरें फ़ैलाने की कोशिश
जब कश्मीर के लोग अलगाववाद और आतंकवाद की खिलाफत करने लगे, तो आतंकियों ने उन पर ही गोली बरसानी शुरू कर दी। पहलगाम के बाद 27 अप्रैल 2025 को कुपवाड़ा जिले में आतंकियों ने एक स्थानीय व्यक्ति की हत्या कर स्थानीय लोगों में डर पैदा करने की कोशिश की। इसी बीच पाकिस्तानी मीडिया ने अफवाहें फैलाना शुरू किया कि, पहलगाम हमला खुद सरकार ने कराया है। पाकिस्तानी सोशल मीडिया अकाउंट्स ने दुष्प्रचार करने और सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के लिए फर्जी वीडियो भी शेयर किये। कुछ अकाउंट्स ने तो पुराने वीडियो का इस्तेमाल करके झूठा दावा किया कि, कश्मीरी छात्रों को निशाना बनाया जा रहा है, लेकिन जब स्थानीय लोगों को जमीन पर ऐसा कुछ नहीं दिखा, तो उन्हें पाकिस्तान की चाल समझ में आ गई और वे उसके झांसे में नहीं आये।
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