नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (SC) ने शुक्रवार 8 नवंबर को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जा बहाल करने की मांग वाले मामले में 4:3 के बहुमत से फैसला सुनाया। जस्टिस सीजेआई डीआई चंद्रचूड़ की 7 जजों की बेंच ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर अहम टिप्पणी की।
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सरकारी नियमों से पूरी तरह से नहीं होगा अलग
देश की सबसे बड़ी अदालत ने शुक्रवार को फैसला पढ़ते हुए कहा कि हमें तय करना है कि किसी संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा कैसे दिया जा सकता है, भाषाई, सांस्कृतिक या फिर धार्मिक अल्पसंख्यक अनुच्छेद 30 के तहत अपने लिए संस्थान का निर्माण कर सकते हैं, लेकिन वे सरकारी नियमों से पूरी तरह अलग नहीं होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ‘भले ही कोई शैक्षणिक संस्थान संविधान लागू होने से पहले स्थापित हुई हो या बाद में, इससे उसके दर्जे में कोई बदलाव नहीं आएगा, हालांकि किसी संस्था की स्थापना करने और उसे सरकारी तंत्र का हिस्सा बनने में अंतर है, लेकिन अनुच्छेद 30(1) का उद्देश्य यह है कि अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित संस्था का प्रबंधन केवल अल्पसंख्यक द्वारा किया जाना चाहिए।’
संस्थान की स्थिति पर बाद में होगा फैसला
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “कोर्ट में ये देखना होगा कि संस्थान की स्थापना के समय धन और जमीन की व्यवस्था किसने की थी।” हम अजीज बाशा के फैसले को पलट रहे हैं, लेकिन एएमयू की स्थिति पर फैसला तीन जजों की बेंच बाद में करेगी। उल्लेखनीय है कि, अजीज बाशा बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।
एएमयू मामले की पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि एएमयू को अल्पसंख्यक श्रेणी में रखना गलत है। पीठ में पिछली सुनवाई में फैसला सुरक्षित रख लिया था। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, मुख्य न्यायाधीश नामित सीजेआई संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने की थी।
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