



पटना लाया जा रहा शव
उनके निधन से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिन्दू परिषद् में शोक की लहर दौड़ गई है। संघ ने उन्हें प्रथम कार सेवक का दर्जा दिया था। उनका शव दिल्ली से पटना लाया जा रहा है जो दोपहर बाद यहां बेउर स्थित उनके आवास पर पहुंचेगा। इसके बाद विधान परिषद् ले जाया जाएगा, यहां से अंतिम संस्कार के लिए सुपौल ले जाया जायेगा।
भाजपा के वरिष्ठ नेता और राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी कामेश्वर चौपाल जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। वे एक अनन्य रामभक्त थे, जिन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में बहुमूल्य योगदान दिया। दलित पृष्ठभूमि से आने वाले कामेश्वर जी समाज के वंचित समुदायों के… pic.twitter.com/pmqXNvvqfr
— Narendra Modi (@narendramodi) February 7, 2025
1989 में रखी नहीं मन्दिर की पहली ईंट
गौरतलब है कि, 9 नवंबर 1989 को अयोध्या के श्रीराम मंदिर के शिलान्यास में पहली ईंट रखने वाले कामेश्वर चौपाल श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के स्थायी सदस्य थे। वे दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और बिहार के सुपौल जिले के निवासी हैं। उनकी पढ़ाई मधुबनी जिले में हुई थी, जहां से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए। उनके एक शिक्षक संघ के कार्यकर्ता थे, जिनकी मदद से कामेश्वर ने कॉलेज में दाखिला लिया था। स्नातक करने के बाद कामेश्वर भी संघ के प्रति पूरी तरह से समर्पित हो गए और मधुबनी के जिला प्रचारक बन गए।
राम को मानते थे रिश्तेदार
कामेश्वर ने 3 नवंबर 2023 को एक पत्रकार बात करते हुए कहा था कि हम लोग जब बड़े हो रहे थे तो श्रीराम को अपना रिश्तेदार मानते थे। उनका कहना था कि, मिथिला क्षेत्र में शादी के दौरान वर और वधू को राम-सीता के प्रतीक के रूप में देखने की परंपरा है क्योंकि मिथिला को सीता का घर माना जाता है।
चुनौती पूर्ण रहा है रानजीतिक करियर
कामेश्वर चौपाल का राजनीतिक करियर काफी चुनौतीपूर्ण रहा था। साल 1991 में उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान के खिलाफ चुनाव लड़ा था। बेगूसराय के बखरी क्षेत्र से भी उन्होंने चुनाव लड़ा था, जहां उनकी हार हुई, जो सुरक्षित विधानसभा सीट मानी जाती है। इसी तरह से सुपौल में भी उन्हें प्रतिनिधित्व का मौका नहीं मिला लेकिन वहां से भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
उप मुख्यमंत्री लेने से कर दिया था इनकार
साल 2002 में वे बिहार विधान परिषद के सदस्य बने। 2014 में भाजपा ने उन्हें पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन के खिलाफ टिकट दिया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। 2020 में उप मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में भी उनका शामिल होने की चर्चा हुई थी, लेकिन उन्होंने सामने से आकर ये पद लेने से इंकार कर दिया और कहा उन्हें कुछ नहीं चाहिए।
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