नई दिल्ली। पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन (India-China Dispute) के बीच 52 महीने से चल रहे गतिरोध पर विराम लग गया है। दोनों देशों के बीच सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर चली कवायद के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर गश्त और सैन्य तनाव कम करने पर सहमति बन गई है। फैसले की घोषणा करते हुए विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि हम 2020 में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हुई घटनाओं के बाद से सैन्य और राजनयिक स्तर पर चीनी पक्ष के साथ लगातार संपर्क में थे। डब्ल्यूएमसीसी और सैन्य कमांडर स्तर पर दोनों देशों के बीच कई दौर की बातचीत हुई। अब जाकर शांति समझौता हुआ है और बार्डर पर तनाव कम हुआ है।
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सुलझा सैन्य विवाद
उन्होंने कहा कि इन संवाद अभ्यासों की बदौलत कई मोर्चों पर संघर्ष और तनाव का समाधान संभव हो सका। हालांकि कुछ बिन्दुओं पर अभी असहमति बनी हुई है। विदेश सचिव ने कहा, पिछले कुछ हफ्तों की बातचीत के बाद भारत और चीन के बीच सीमा क्षेत्र में सैन्य गश्त स्थापित करने पर सहमति बनी है। इससे सैन्य टकराव की स्थिति सुलझ गई।
रूस में शी जिनपिंग से मिल सकते हैं पीएम मोदी
बता दें कि भारत और चीन के बीच सीमा तनाव पर समझौते की यह खबर तब आई है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस सप्ताह रूस के कज़ान में मिलने वाले हैं। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच बैठक की भी अटकलें लगाई जा रही हैं। हालांकि विदेश सचिव ने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात की पुष्टि नहीं की, लेकिन ऐसी संभावना से इनकार भी नहीं किया।
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भारत ने चीन की उसी की भाषा में दिया जवाब
गौरतलब है कि पूर्वी लद्दाख में सीमा पर दोनों पक्षों के बीच सैन्य टकराव और तनाव के कारण, गश्त के दायरे पर गहरी असहमति थी। चीन की मंशा पर भी सवाल खड़े हो रहे थे। कहा जा रहा था कि चीन भारत की जमीन कब्जाने की जुगत में था। ऐसे में भारतीय सेना ने उसी की भाषा में उसको जवाब दिया। भारत ने चीनी सैन्य पैतरों को अपनाते हुए उसे समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए भी मजबूर कर दिया।
कल रूस के लिए रवाना होंगे पीएम
विदेश सचिव ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के निमंत्रण पर कल कज़ान के लिए रवाना होंगे। सम्मेलन का विषय विकास और वैश्विक सुरक्षा के लिए बहुपक्षवाद को मजबूत करना है। भारत ब्रिक्स में प्रमुख स्थान रखता है और इसके योगदान ने आर्थिक और सतत विकास और वैश्विक शासन सुधार जैसे क्षेत्रों में ब्रिक्स प्रयासों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पिछले साल ब्रिक्स विस्तार के बाद जोहान्सबर्ग में यह पहला शिखर सम्मेलन होगा।
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