



प्रयागराज। Mahila Naga Sadhu Mahakumbh: प्रयागराज में महाकुंभ के चलते मकर संक्रांति पर 35 लाख श्रद्धालुओं ने शाही स्नान किया। इस दौरान 13 अखाड़ों के नागा साधु और साध्वियां भी पहुंचीं। सबसे पहले नागा साधुओं ने स्नान किया। फिर महिला साध्वियों ने। लोगों के मन में अक्सर यह सवाल आता है कि जब महाकुंभ के दौरान किसी साध्वी को मासिक धर्म आ जाता है तो वे करती हैं? आज हम आपको इस सवाल का जवाब बताएंगे। महिला नागा साधु केवल उन्हीं दिनों में स्नान करती हैं जब उनका मासिक धर्म नहीं होता है। कुंभ के दौरान जब उन्हें मासिक धर्म आता है तो वह अपने ऊपर गंगा जल छिड़क लेती हैं। इससे ये मान लिया जाता है कि महिला नागा साधु ने गंगा स्नान कर लिया है।
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खास बात ये है कि महाकुंभ में पुरुष नागा साधु स्नान के बाद महिला नागा साधु स्नान करती हैं। अखाड़े की महिला नागा साध्वियों को माई, अवधूतानी या नागिन कह कर संबोधित किया जाता है। नागा साधु बनने के लिए जीवित रहते ही अपना पिंडदान करना होता है और मुंडन भी कराना होता है। साथ ही 10 से 15 साल तक कठिन ब्रह्मचर्य का पालन करना होता।
भगवा वस्त्र करती हैं धारण
महिला नागा साधु पुरुष नागा साधु से भिन्न होती हैं। वह दिगंबर नहीं होती है। वे सभी भगवा पहनती है। हालांकि, कपड़े में कोई सिलाई नहीं है, जिससे मासिक धर्म के दौरान उन्हें किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है। कुंभ मेले में नागा साध्वियां शामिल होती हैं।
नागा साधु या संन्यासी बनने के लिए व्यक्ति को 10-15 वर्ष तक कठिन ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। नागा साधु बनने के लिए गुरु को यह विश्वास दिलाना होता है कि वह नागा साधु बनने के योग्य है और उसने भगवान के प्रति समर्पण कर दिया है। इसके बाद गुरु ही नागा साधु बनने की अनुमति देते हैं। नागा साधु बनने से पहले एक महिला अपने पिछले जीवन का अध्ययन कर यह पता लगाती है कि वह ईश्वर के प्रति समर्पित है या नहीं और नागा साधु बनने के बाद वह कठिन साधना कर सकती है या नहीं। किसी भी महिला को नागा साधु बनने से पहले अपने जीवनकाल में पिंडदान करना होता है और मुंडन भी कराना होता है।
महिला नागा साधु क्या खाती हैं?
मुंडन के बाद महिला नदी में स्नान करती है, जिसके बाद महिला नागा साधु पूरे दिन देवताओं का जाप करती हैं। पुरुषों की तरह महिला नागा साधु भी भगवान शिव की पूजा करती हैं। वह सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान शिव का जाप करती हैं और रात को भगवान दत्तात्रेय की पूजा करती हैं। दोपहर के भोजन के बाद वह फिर से भगवान शिव का जाप करती हैं। नागा साधु अपने आहार में कंद मूल, फल जड़ी-बूटियां और विभिन्न प्रकार की पत्तियां लेती हैं। महिला नागा साध्वियों के रहने के लिए अलग-अलग अखाड़ों की व्यवस्था की जाती है।
2013 में पहली बार सामने आया था जूना अखाड़ा
लगभग 10 साल पहले, 2013 में इलाहाबाद के कुंभ में पहले नागा महिला अखाड़े ने अपनी अलग पहचान बनाई थी। यह अखाड़ा संगम तट पर जूना संन्यासी अखाड़े के रूप में सामने आया था। नागा महिला अखाड़े की तत्कालीन नेता दिव्या गिरी थीं, जिन्होंने साधु बनने से पहले नई दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड हाइजीन में मेडिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की थी। 2004 में वह आधिकारिक तौर पर महिला नागा साधु बन गईं। तब उन्होंने कहा कि वह कई चीजें अलग से करना चाहती हैं। जूना अखाड़े के मुख्य देवता भगवान दत्तात्रेय हैं, लेकिन वे दत्तात्रेय की मां अनुसूया को मुख्य देवता बनाना चाहती हैं।
कौन हैं माता अनुसुइया
महिला नागा साधु भगवान शिव और दत्तात्रेय के साथ अनिवार्य तौर पर माता अनुसुइया की पूजा करती हैं। ऋषि अत्रि और भगवान दत्तात्रेय की माता का नाम अनुसुइया है। वह अपनी पतिव्रता के लिए दुनिया भर में जानी जाती थीं। ब्रह्मा, महेश और विष्णु की पत्नियों को लगता था कि वे सबसे ज्यादा पतिव्रता हैं, लेकिन जब महर्षि नारद ने तीनों को बताया कि पृथ्वी पर अनुसूया उनसे अधिक पतिव्रता हैं तो ये बात उन्हें बहुत चुभ गई।
तीनों ने अपने पतियों से कहा कि अनुसुइया की परीक्षा लेनी चाहिए। इसके लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश धरती पर जाना पड़ेगा। ये परीक्षा ऐसी हुई कि माता अनुसुइया का दर्जा देवी के तौर पर काफी ऊंचा हो गया।
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