



नई दिल्ली। Tahavvur Rana Hanged: 26 नबंबर 2028 को मुंबई में हुए आतंकी हमले का मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा भारत आ चुका है। राणा से पूछताछ के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को कोर्ट से 18 दिन की कस्टडी मिली हुई है। प्रत्यर्पण केस में प्रावधान है कि, जिस देश से आरोपी को लाया जाता है, वह कुछ शर्त लगा सकता है। हालांकि, अगर उस देश में किसी भी अपराध के लिए मौत की सजा का प्रावधान है, तो वह आम तौर पर मौत की सजा न देने की शर्त नहीं लगाता। वैसे भी प्रत्यर्पण एक न्यायिक प्रक्रिया है और इसका आदेश कोर्ट देता है। इसमें दोनों देशों के कानून और प्रत्यर्पण संधियों को देखा जाता है। आइए आपको बताते हैं कि, अमेरिका में मौत की सजा क्या है और यह किन-किन तरीकों से दी जाती है? क्या अमेरिका, भारत को प्रत्यर्पित किये गये आतंकी राणा की फांसी की सजा देने से रोक सकता है?
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आतंकी धाराओं में दर्ज है मुकदमा
जिन धाराओं के तहत तहव्वुर राणा को आरोपित किया गया है और अमेरिका से उसके प्रत्यर्पण की मांग की गई है, उनमें भारतीय दंड संहिता की धाराएं 120बी (आपराधिक साजिश), 121 (देश के खिलाफ युद्ध का आगाज), 121ए (देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की प्लानिंग), 302 (हत्या), 468 व 471 (जालसाजी) और कठोर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धाराएं 18 व 20 शामिल हैं। ये सभी एक्ट आतंकी गतिविधियों से जुड़े हैं और इनका मतलब है कि, अब अमेरिका भी तहव्वुर राणा को मौत की सजा दिए जाने से नहीं रोक सकता।
1997 में हुई थी प्रत्यर्पण संधि
बता दें कि, अमेरिका और भारत के बीच साल 1997 में हुई प्रत्यर्पण संधि की धारा 8 के मुताबिक, जिस देश से प्रत्यर्पण मांगा जा रहा है, अगर उस देश में मौत की सजा का प्रावधान नहीं है, तो वह देश प्रत्यर्पण चाहने वाले देश के अनुरोध को खारिज कर सकता है, लेकिन, अमेरिका के अधिकतर राज्यों में आरोपी को मौत की सजा का प्रावधान है। ऐसे में अगर भारत में राणा को मौत की सजा दी जाती है, तो किसी भी तरह की दिक्कत नहीं आएगी। वैसे भी, राणा पर आतंकवाद और मुंबई हमले की साजिश रचने का आरोप है। आतंकवाद के अपराध के लिए अमेरिका में भी मौत की सज़ा है।
इन आतंकियों को दी जा चुकी है फांसी
भारत में मृत्युदंड पर सिर्फ फांसी देने का एक तरीका है। यहां फांसी का मामला दुर्लभतम होना चाहिए। हालांकि, भारत की न्यायपालिका भी आतंकवादियों को फांसी देने में संकोच नहीं करती हैं। मुंबई हमले के दोषी अजमल कसाब, संसद हमले के दोषी अफजल गुरु और मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन को आतंकवाद के मामलों में फांसी दी गई है। तहव्वुर राणा पर भी आतंकवाद फैलाने और आतंकवाद की साजिश रचने का आरोप है। ऐसे में उसे भी फांसी दी जा सकती है। ऐसा करने से अमेरिका भारत को नहीं रोक सकता है।
2023 में इतने लोगों को दी गई फांसी
अमेरिका में दी जाने वाली फांसी की संख्या कुछ देशों की तुलना में बहुत कम है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 2023 में 16 देशों में 1,153 फांसी दर्ज की, जिसमें चीन शामिल नहीं है। माना जाता है कि, चीन में उस साल हजारों लोगों को फांसी दी गई थी, लेकिन सटीक आंकड़े पता नहीं है। 2023 में कुल संख्या 2022 की तुलना में 31% ज्यादा है और एक दशक में सबसे ज्यादा है। 2023 में दर्ज की गई फांसी में से सबसे ज्यादा ईरान (कम से कम 853), सऊदी अरब (172), सोमालिया (कम से कम 38) और संयुक्त राज्य अमेरिका (24) लोगों को फांसी दी गई।
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शिकागो की जेल में बंद था तहव्वुर राणा
शिकागो में मौत की सज़ा देने का प्रावधान है। यहां 1923 में सबेला निट्टी को अपने पति की हत्या के लिए पहली बार किसी महिला को मौत की सजा सुनाई गई थी। भारत आने से पहले तहव्वुर राणा शिकागो की ही जेल में बंद था। चूंकि वहां मौत की सजा का प्रावधान है, इसलिए भारत में उसकी मौत की सजा को नहीं रोका जा सकता। 7 मार्च को अमेरिका के साउथ कैरोलिना में एक कैदी को गोली मारकर मौत की सजा सुनाई गई। 15 साल में यह पहली बार है जब अमेरिका में फायरिंग दस्ते द्वारा मौत की सजा दी गई है। तीन जेल कर्मचारियों ने राइफल का उपयोग करके ब्रैड सिगमैन को गोली मार दी। ब्रैड को 2001 में अपनी पूर्व प्रेमिका के माता-पिता की बेसबॉल बैट से हत्या करने का दोषी ठहराया गया था।
गोली मारकर मृत्युदंड
1976 में मृत्युदंड की बहाली के बाद से अमेरिका में केवल तीन अन्य प्रतिवादियों को फायरिंग दस्ते से मत्युदंड दिया गया। पिछले पांच दशकों में अमेरिका में 1,600 से अधिक लोगों को फांसी पर लटकाया जा चुका है। मृत्युदंड सूचना केंद्र के अनुसार, दक्षिण कैरोलिना उन 27 अमेरिकी राज्यों में से एक है, जहां मृत्युदंड देने का प्रावधान है। ये एक गैर-लाभकारी संगठन है जो मृत्युदंड और इससे प्रभावित लोगों से संबंधित मुद्दों पर डेटा और विश्लेषण संकलित करता है।
1,613 लोगों को दिया गया मृत्युदंड
मृत्युदंड देने वाले अधिकांश राज्य दक्षिण और पश्चिम में स्थित हैं। हालांकि, कैलिफोर्निया, ओहियो, ओरेगन और पेंसिल्वेनिया जैसे कुछ राज्यों ने फांसी पर प्रतिबंध लगा दिया है। अमेरिकी सरकार की ट्रैकिंग के अनुसार, साल 2024 में अमेरिकी राज्यों में कुल 25 लोगों को फांसी पर लटकाया गया। इन पांच सालों में देश में 1,613 लोगों को फांसी दी गई है, जिसकी शुरुआत यूटाह में फायरिंग स्क्वाड द्वारा की गई फांसी से हुई थी। इसमें 16 संघीय फांसी शामिल हैं, जिनमें 1995 के ओक्लाहोमा सिटी बम विस्फोट के अपराधी टिमोथी मैकवे की फांसी भी शामिल है।
इन 16 संघीय फांसी में से 13 राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पहले प्रशासन के अंतिम महीनों में किए गए थे। पूर्व अमेरिकी अटॉर्नी जनरल मेरिक गारलैंड, जिन्हें पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा इस पद के लिए चुना गया था। गारलैंड ने नीतियों और प्रक्रियाओं की समीक्षा लंबित रहने तक 2021 में फांसी पर रोक लगा दी थी। अटॉर्नी जनरल पाम बॉन्डी ने ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल के दौरान उस रोक को हटा दिया। 1977 में आधुनिक मृत्युदंड युग शुरू होने से पहले, 1600 के दशक की शुरुआत में उपनिवेशों के समय से अमेरिका में हजारों लोगों को फांसी पर लटकाया गया।
वर्जीनिया में मृत्युदंड पर लगी रोक
USAFacts के एक विश्लेषण पर गौर करें तो, आधुनिक युग में सबसे अधिक मृत्युदंड 1999 में दिए गए थे, उस साल 98 लोगों को फांसी दी गई थी। इससे पहले 1935 में 199 लोगों को मौत की सजा दी गई थी। हाल के वर्षों में, टेक्सास में सबसे अधिक लोगों को फांसी दी गई। 1977 से फरवरी 2025 तक 593 लोगों की मत्युदंड दिया गया। अगले सबसे ज़्यादा कुल संख्या वाले राज्य ओक्लाहोमा में 127, वर्जीनिया में 113, फ़्लोरिडा में 107 और मिसौरी में 101 लोगों को फांसी दी गई। तत्कालीन डेमोक्रेटिक गवर्नर राल्फ़ नॉर्थम ने वर्ष 2021 में वर्जीनिया में मृत्युदंड के प्रावधान को खत्म करने वाले कानून पर हस्ताक्षर किया, जिससे यह ऐसा करने वाला पहला दक्षिणी राज्य बन गया।
इंजेक्शन से मौत की सजा
आधुनिक युग में, मौत की सजा देने का सबसे आम तरीका घातक इंजेक्शन है, जिससे अब तक 1,428 लोगों को मृत्युदंड दिया गया है। 1977 से अब तक, बिजली के झटके से 163, गैस से 15 और फांसी से तीन लोगों को मृत्युदंड दिया गया है। सिगमैन की फांसी के साथ ही 1977 से अब तक फायरिंग स्क्वाड द्वारा दी गई फांसी की संख्या चार हो गई है। डेथ पेनल्टी इंफॉर्मेशन सेंटर के डेटा के अनुसार, 1977 से अब तक सबसे ज़्यादा फांसी श्वेत कैदियों (899) को दी गई है। वहीं, 549 अश्वेत कैदियों और 134 लातीनी कैदियों को मौत की सजा दी गई। इस बीच, सेंटर द्वारा प्रकाशित डेटा ब्रेकडाउन के अनुसार, 1 जनवरी, 2024 तक मृत्युदंड की सज़ा पर श्वेत और अश्वेत कैदियों की संख्या लगभग बराबर हो गई है। इसमें 41%अश्वेत और 42% श्वेत कैदी हैं।
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