



काराकस। Nobel Peace Prize: शांति के नोबेल पुरस्कार को लेकर लंबे समय से चल रही चर्चा आज समाप्त हो गई। साथ ही ट्रंप का नोबेल पुरस्कार पाने का सपना भी टूट गया, क्योंकि शुक्रवार 10 अक्टूबर को साल 2025 का शांति का नोबेल पुरस्कार वेनेजुएला की मारिया कोरिना मचाडो को मिला। वेनेजुएला में ‘आयरन लेडी’ के नाम से मशहूर मचाडो को ये पुरस्कार वहां के लोगों के लिए लोकतांत्रिक अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए मिला है। मचाडो के लिए ये पुरस्कार इसलिए भी खास है क्योंकि इसकी रेस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी शामिल थे, जिन्हें पछाड़ कर उन्होंने ये उपाधि हासिल की है।
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लंबे समय से लड़ रही हैं लोकतंत्र की लड़ाई
मारिया वेनेजुएला में लंबे समय से लोकतंत्र की लड़ाई लड़ रही हैं और वे लोकतंत्र आंदोलन की नेता के रूप में मौजूदा समय में लैटिन अमेरिका में नागरिक साहस के सबसे असाधारण उदाहरणों में से एक हैं। माना जाता है कि 58 साल की मरीना उस राजनीतिक विपक्ष को एक प्रमुख और एकजुट करने वाली हस्ती रही हैं, जो कभी गहराई से विभाजित था। एक ऐसा विपक्ष जिसने स्वतंत्र चुनाव और प्रतिनिधि सरकार की मांग में साझा आधार पाया।
2002 में शामिल हुई थीं राजनीति
एंड्रेस बेलो कैथोलिक विश्वविद्यालय से औद्योगिक इंजीनियरिंग में डिग्री और कराकास स्थित इंस्टीट्यूटो डी एस्टुडियोस सुपीरियरेस डी एडमिनिस्ट्रेशन से वित्त में मास्टर डिग्री प्राप्त करने वाली मचाडो साल 2002 में वे वोट-मॉनिटरिंग समूह सुमाते के संस्थापक के तौर पर राजनीति में शामिल हुई थीं। इसके बाद 2011 से 2014 तक वेनेजुएला की राष्ट्रीय सभा की निर्वाचित सदस्य के रूप में भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी।
वेनेजुएला में प्रतिबंधित जीवन जी रहीं मचाडो
मरीना वर्तमान समय में विपक्ष की नेता हैं। वे एलेजांद्रो प्लाज के साथ राजनीतिक पार्टी वेंटे वेनेजुएला की राष्ट्रीय समन्वयक भी हैं। मचाडो को साल 2018 में बीबीसी की सौ प्रमुख महिलाओं में भी सूचीबद्ध किया गया था और अब 2025 में टाइम पत्रिका ने उन्हें दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में जगह दी है। मचाडो इस समय वेनेजुएला में प्रतिबंधित जीवन जी रही हैं। वहां की निकोलस मादुरो सरकार ने उनके वेनेजुएला से बाहर जाने पर प्रतिबन्ध लगाया हुआ है।
राष्ट्रपति चुनाव लड़ने पर लगा था प्रतिबन्ध
दरअसल, पिछले साल यानी 2024 में वेनेजुएला में हुए राष्ट्रपति चुनाव में मरीना एक प्रमुख चेहरा थीं, लेकिन बाद में उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इतना कुछ होने के बावजूद वह दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींच रही हैं।
वेनेजुएला में लोकतांत्रिक अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली मचाडो ने साल 1992 में अनाथ और अपराधी कराकास स्ट्रीट बच्चों की देखभाल के लिए फंडासिओन एटेनिया (एटेनिया फाउंडेशन) की शुरुआत की थी, जो निजी दान के उपयोग से चलता है। इस फाउंडेशन की स्थापना के बाद साल 1993 में वे कराकास चली गईं। इसके बाद 2001 में मचाडो और एलेजांद्रो प्लाज ने सुमाते बनाया। सुमाते में मिली अहम जिम्मेदारी की वजह से मचाडो ने फाउंडेशन छोड़ दिया।
कुछ गिने चुने प्रभावशाली लोगों में होती है गिनती
बताया जाता है कि, वेनेजुएला में सत्तावादी है, जिससे यहां का राजनीतिक जीवन बेहद कठिन है। बावजूद इसके सुमाते की संस्थापक के रूप में मचाडो ने 20 वर्ष पहले लोकतांत्रिक अधिकारों के साथ ही स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए मांग उठाई थी। उन्होंने कहा था ये चुनाव गोलियों से नहीं मतपत्रों से था। इसके बाद उन्होंने राजनीतिक पदों और संगठनों के लिए न्यायिक स्वतंत्रता, मानवाधिकारों और लोकप्रिय प्रतिनिधित्व के लिए भी अपने आवाज बुलंद की। वर्तमान समय में मचाडो दुनिया के कुछ गिने चुने प्रभावशाली लोगों में शामिल हैं।
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