



देहरादून। 11 Madrasas Were Sealed: उत्तराखंड में हिन्दू-मुस्लिम मुद्दा एक बार फिर से गरमा गया है। यहां की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने सूबे की राजधानी देहरादून में 11 मदरसों को सील कर दिया है, जिसका मुस्लिम संगठन विरोध कर रहे हैं। मुस्लिम संगठनों ने मदरसों के खिलाफ की जा रही इस कार्रवाई को अवैध बताया है। वहीं, प्रशासन का कहना है कि जिन मदरसों को सील किया गया है वे राज्य मदरसा बोर्ड या शिक्षा विभाग से पंजीकृत नहीं थे। इसके अलावा मुस्लिम संगठनों का गुस्सा इसलिए भी भड़का है क्योंकि मुख्यमंत्री धामी ने इन संस्थानों की फंडिंग के स्रोत और गठन की जांच कराने की बात कही है। उनका ये भी कहना है कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि ये संस्थान नियमों के दायरे में रहकर संचालित हों।
इसे भी पढ़ें- Common Civil Code: इस राज्य में भी लागू होगा UCC, सरकार ने किया समिति का गठन
28 फरवरी को जारी हुआ था आदेश
गौरतलब है कि, मदरसों की जांच के आदेश जनवरी में हुए निकाय चुनाव से पहले ही दिए गये थे। इसी के तहत बीते 28 फरवरी को देहरादून जिला प्रशासन ने कार्रवाई का आदेश निकाला और अब कार्रवाई की जा रही है। एक मीडिया चैनल से बात करते हुए जिला मजिस्ट्रेट साविन बंसल ने बताया कि, उतराखंड की राजधानी देहरादून में 57 मदरसे ऐसे हैं, जो बिना पंजीकरण के चल रहे थे। इनमें 16 सदर देहरादून तहसील में, 34 विकासनगर में, 6 डोईवाला में और 1 कलसी में स्थित है। हालांकि कुछ मदरसे पंजीकृत भी हैं, जिनमें 27 विकासनगर में और एक डोईवाला में है।
बिना रजिष्ट्रेशन के चल रहे थे मदरसे
इस बारे में बात करते हुए विकासनगर तहसील के उप-जिला मजिस्ट्रेट विनोद कुमार ने एक मीडिया चैनल को बताया कि, पिछले नवंबर में एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि जिले में कई मदरसे बिना किसी रजिष्ट्रेशन के चल रहे हैं। इसके बाद शिक्षा विभाग, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग, राजस्व विभाग और पुलिस ने संयुक्त रूप से जांच शुरू की और डीएम के आदेश पर 28 फरवरी को छापेमारी की कार्रवाई की गई। इस दौरान नियमों का उल्लंघन पाए जाने पर विकासनगर के 9 मदरसों को तत्काल सील कर दिया गया जबकि दो अन्य मदरसे जिन्हें सील किया गया वे डोईवाला और सदर में स्थित थे।
यूपी की तर्ज पर की गई कार्रवाई
कहा जा रहा है कि, उत्तर प्रदेश सरकार की तर्ज पर उत्तरखंड सरकार ने भी मदरसों के खिलाफ अभियान शुरू किया गया है और अवैध रूप से चल रहे मदरसों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। बता दें कि उत्तर प्रदेश में काफी समय से मदरसों की जांच चल रही है और कइयों के खिलाफ कार्रवाई भी की जा चुकी है। इसी कड़ी में उत्तराखंड के 13 जिलों के जिलाधिकारी द्वारा राज्यव्यापी जांच की जा चुकी है। हालांकि इसके नतीजे अभी तक सार्वजनिक नहीं किए गए हैं। मान्यता प्राप्त मदरसे राज्य मदरसा बोर्ड के तहत आते हैं, जबकि गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे दारुल उलूम नदवतुल उलमा और दारुल उलूम देवबंद जैसे बड़े सेमिनरी के पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं।
इसे भी पढ़ें- Uttarkashi Mosque Dispute:: पुलिस और प्रदर्शनकारियों में झड़प, लाठीचार्ज के बाद तनाव, धारा 163 लागू
मुस्लिम संगठन ने जताया विरोध
धामी सरकार द्वारा मदरसों के खिलाफ की जा रही इस कार्रवाई को मुस्लिम सेवा संगठन के अध्यक्ष नईम कुरैशी ने अवैध करार दिया है। उनका कहना है कि, मदरसा चलाने के लिए किसी भी प्रकार की मान्यता की जरूरत नहीं होती। वहीं, सरकार ने बिना कोई नोटिस दिए या स्पष्टीकरण मांगे ही सीलिंग की कार्रवाई कर दी, जो सरासर नाइंसाफी है। उन्होंने बताया कि, इस कार्रवाई के खिलाफ संगठन ने कलेक्ट्रेट और मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण के बाहर प्रदर्शन कर ज्ञापन सौंपा है। साथ ही प्रशासन को चेतावनी भी दी है कि, यदि यह अवैध कार्रवाई नहीं रोकी गई तो सचिवालय के बाहर बड़ा विरोध प्रदर्शन होगा। कुरैशी का ये भी दावा है कि एक मस्जिद को भी अवैध रूप से सील किया गया है।
मदरसों में लागू होगा एनसीईआरटी पाठ्यक्रम
इस मामले को लेकर उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शमूम कासमी का कहना है कि, मदरसों को मुख्यधारा में शामिल करने की प्रक्रिया चल रही है। उन्होंने बताया कि 28 फरवरी से अब तक आये 88 आवेदनों में से 51 मदरसों को मान्यता प्रदान की जा चुकी है। उनका लक्ष्य है कि इन मदरसों में धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ एनसीईआरटी पाठ्यक्रम भी लागू किया जाये ताकि यहां आने वाले बच्चे भी आधुनिक शिक्षा ग्रहण कर सकें। कासमी ने बताया कि, संस्कृत को वैकल्पिक भाषा के रूप में शुरू करने का प्रस्ताव भी है, क्योंकि यह राज्य की दूसरी भाषा है।
हो सकते हैं गंभीर परिणाम
सरकार ने मदरसों को सील करने की कार्रवाई जिस भी मकसद से की हो, लेकिन इतना जरूर है कि इससे मुस्लिम संगठन नाराज हैं। ऐसे में ये प्रशासनिक सख्ती और धार्मिक स्वतन्त्रता के बीच टकराव का मामला बन गया है। ये एक संवेदनशील मुद्दा है, जिसके गंभीर परिणाम होने की भी आशंका है। हालांकि इस कार्रवाई को लेकर सरकार का तर्क है कि मदरसों के रजिष्ट्रेशन से पारदर्शिता आएगी और बच्चों को बेहतर शिक्षा मिलेगी। वहीं, मुस्लिम संगठन इसे अपने अधिकारों का हनन मान रहे हैं। अब देखना ये है कि, क्या सरकार इस राज्यव्यापी कार्रवाई को रोकती है या आगे भी जारी रखती है और इस कार्रवाई का अल्पसंख्यक समुदाय पर क्या असर पड़ता है।
इसे भी पढ़ें- अल्मोड़ा: खाई में गिरी बस, कइयों की मौत, कई घायल, राहत एवं बचाव कार्य जारी