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Indo-Pak Tension: भारत ने पाकिस्तान पर किया इस ताकतवार बम से हमला, जल्द दिखेगा तबाही का मंजर

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Indo-Pak Tension:
नई दिल्ली। Indo-Pak Tension: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है और कई बड़े फैसले लिए हैं। भारत के इन फैसलों से पाकिस्तान में दहशत का माहौल है। वहां की सेना अलर्ट मोड पर है, लेकिन भारत के लोग सरकार के फैसलों से संतुष्ट नहीं हैं। गम और गुस्से में डूबे लोग पाकिस्तान के खिलाफ और सख्त कार्रवाई का इंतजार कर रहे हैं।
पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी भविष्यवाणी
हालांकि, भारत ने बड़ा कदम उठाते हुए सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है। जी हां, सालों से भारत के लोगों का खून बहाने वाले पाकिस्तान को अब पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसना पड़ेगा। बता दें कि, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि, अगला विश्व युद्ध पानी के लिए होगा। उन्होंने कहा था, दक्षिण एशिया में अगला बड़ा युद्ध ब्रह्मोस जैसी मिसाइलों या राफेल या एस-400 जैसे लड़ाकू विमानों से नहीं लड़ा जाने वाला है, यह युद्ध नदियों से लड़ा जा सकता है। उनका ये वक्तव्य अब सही साबित होता हुआ नजर आ रहा है। अब चूंकि भारत ने सिन्धु जल संधि निलंबित कर दी है, तो ऐसे में पाकिस्तान की फसलें बर्बाद हो सकती हैं, शहरों में सूखा पड़ सकता है। अकाल की नौबत आ सकती है। आइए जानते हैं, भारत ने पकिस्तान के खिलाफ किस तरह का युद्ध छेड़ा है और इसका पडोसी मुल्क पर क्या असर पड़ेगा।
बिलावल भुट्टो जरदारी ने उगला जहर

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पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो जरदारी ने एक बार फिर सिंधु जल संधि को लेकर बयान दिया है। भुट्टो ने पाकिस्तान के हैदराबाद में कहा, भारत जानता है कि, दोनों पड़ोसी देशों का इतिहास सिंधु से जुड़ा हुआ है। हम भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सिंधु का गला घोंटने नहीं देंगे और भगवान चाहेगा तो भारत के लोग भी ऐसा नहीं करेंगे। बिलावल ने एक बार फिर से दोहराया कि, पाकिस्तान युद्ध नहीं चाहता, लेकिन अगर भारत सिंधु पर हमला करता है, तो उन्हें पता है कि उस नदी में या तो पानी बहेगा या खून।
जम्मू कश्मीर ने बढ़ाई गई सैन्य संख्या

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बता दें कि, भारत के मिनी स्विट्जरलैंड यानी पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद ऑपरेशन त्रिनेत्र-2 के तहत जम्मू-कश्मीर में सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी गई है। साथ ही, सैन्य अभियानों में अब रात्रिकालीन छापेमारी, निगरानी ड्रोन का इस्तेमाल और संभावित घुसपैठियों को खदेड़ने की कार्रवाई भी तेज कर दी गई है। वहीं, कूटनीतिक स्तर पर भी इस हमले की सीमा पार सुरक्षित पनाहगाहों से जोड़कर कड़ी निंदा की गई है। पाकिस्तान द्वारा लगातार आतंकियों को पनाह दिए जाने की ओर वैश्विक ध्यान आकर्षित करने के लिए भारत के विदेशी मिशन सक्रिय कर दिए गए हैं। एलओसी बेल्ट में सिग्नल इंटरसेप्ट, इलेक्ट्रॉनिक निगरानी और एसेट एक्टिवेशन को भी तेज कर दिया गया है। सहयोगी देशों के साथ खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान में भी बढ़ोतरी हुई है।
1960 में हुआ था सिन्धु जल समझौता

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उल्लेखनीय है कि, सिन्धु जल समझौता साल 1960 में हुआ था। इस संधि में विश्व बैंक ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी। इस दौरान भारत ने उदारता दिखाते हुए सिंधु का 80 फीसदी जल पाकिस्तान को दे दिया था। इस समझौते के तहत भारत ने पूर्वी नदियों (रावी, व्यास, सतलुज) पर नियंत्रण बनाए रखा, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियां (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर नियंत्रण मिला। इससे पहले भारत और पाकिस्तान के बीच कितने ही विवाद हुए, जैसे कि 1965, 1971 और कारगिल युद्ध, लेकिन भारत ने कभी भी पाकिस्तान का पानी नहीं रोका। हर बड़े आतंकी हमले के बाद, चाहे वह संसद (2001), मुंबई (2008), पठानकोट (2016) या पुलवामा (2019) पर हुआ हो। भारत ने सिन्धु संधि को छूने से परहेज किया है, लेकिन अब पाकिस्तान की मनमानी की पराकाष्ठा हो गई है और भारत का सब्र भी अब जवाब दे गया है, जिसका नतीजा है कि अब बाप यानी कि भारत ने बेटे पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है और उसे चारों तरफ से घेर रहा है।
संधि का उल्लंघन किया बिना भी रोका जा सकता है पानी
सिन्धु जल समझौते को लेकर बात करते हुए लेफ्टिनेंट कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी, डिफेंस एनालिस्ट कहते हैं कि, नदी के जल को रोकने का मतलब संधि का सीधा उल्लंघन नहीं है। भारत संधि का उल्लंघन किए बिना भी नदी का जल रोक सकता है।

संधि के तहत प्रस्तावित जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण में तेजी लाना, जैसे कि रैटल (850 मेगावाट) और पाकल दुल (1000 मेगावाट) बांध बनाना। जल भंडारण के अपने पूर्ण अधिकार का इस्तेमाल करना, यानी कि अनुमानित 3.6 मिलियन एकड़, जिसमें से अधिकांश का उपयोग नहीं किया जाता है।

नदी के जल के प्रवाह समय और भंडारण पैटर्न में बदलाव करना, जो सूक्ष्म लेकिन प्रभावी रूप से पाकिस्तान के बुवाई के मौसम को प्रभावित करेगा, जिससे वहां की फसलें प्रभावित होंगी।

नई परियोजनाओं के लिए प्रशासनिक मंजूरी में लेट करना, जिसके लिए दूसरे द्विपक्षीय परामर्श की जरूरत पड़ती है।

दुश्मन पर पड़ेगा मनोवैज्ञानिक दबाव

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भारत के इन कदमों से पाकिस्तान में संवेदनशील कृषि चक्रों के दौरान स्थानीय बाढ़ या अस्थायी जल संकट हो सकता है, जिससे उस पर मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ेगा। हालांकि, इस रणनीतिक धैर्य की सीमायें हैं, लेकिन इसके दीर्घकालिक परिणाम देखने को मिलेंगे। ऐसे में ये मुद्दा पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र और अन्य मंचों पर उठा सकता है।  सोढ़ी कहते हैं कि, पाकिस्तान पहले से ही दुनिया के सबसे अधिक जल-तनाव वाले देशों में से एक है। ऐसे में कोई भी नया जल जोखिम उसे और मुश्किल में डाल देगा। पाकिस्तान की 90% कृषि सिंधु नदी के पानी पर निर्भर है। इस व्यवधान से वहां के गेहूं, गन्ना और चावल की पैदावार पर बुरा असर पड़ सकता है।

आतंकवाद को खत्म करने के लिए नाकाफी है इंतजाम

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वे कहते हैं कि, सिंधु जल संधि का कानूनी रूप से पालन करने के बावजूद भारत को पानी को ‘हथियार’ के रूप में इस्तेमाल करने के लिए उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आलोचना का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन इससे पाकिस्तान के आतंकी ढांचे को नेस्तनाबूद नहीं किया जा सकता है। जल संप्रभुता और नदी प्रबंधन को लेकर राष्ट्रीय भावना बढ़ सकती है। ये संकेत भूराजनीति में मायने रखते हैं। इनका उद्देश्य मनोवैज्ञानिक अधिक है।

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पाकितान को हराना होगा आसान

अगर भारत ने लंबे समय तक सिंधु का पानी रोक दिया, तो पाकिस्तान के शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में पानी की किल्लत हो जाएगी, जिससे देश में अशांति बढ़ेगी। इससे पाक आर्मी को भी आन्तरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इसके साथ ही, पर्याप्त अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति के बिना बार-बार की जाने वाली शिकायतें पाकिस्तान को और दुनिया से अलग-थलग करने का काम करेंगी। भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर बड़ा कदम उठाया है। यह मनोवैज्ञानिक के साथ-साथ कूटनीतिक युद्ध भी है, जिसमें पाकिस्तान को हराना और भी आसान होगा। साथ ही भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कोई जबाव नहीं देना होगा।

ये कदम उठाए भारत

भारत को चाहिए कि, वह सिंधु जल संधि के पानी को रोकने के लिए बांध परियोजनाओं को तेजी से पूरा करें।

बेहतर से बेहतर नदी प्रबंधन तकनीकों का इस्तेमाल करें

मजबूत जलविद्युत बुनियादी ढांचे की व्यवस्था करें।

ये सब करके भारत न सिर्फ अभी बल्कि भविष्य में पाकिस्तान के साथ होने वाले कूटनीतिक गतिरोधों के दौरान पानी को दबाव के रूप में इस्तेमाल कर सकता है। भारत के संतुलित दृष्टिकोण को रणनीतिक दृढ़ता और कानून के पालन के उदाहरण के रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है। घरेलू स्तर पर नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए भारत के भीतर नदी पारिस्थितिकी तंत्र की सावधानीपूर्वक निगरानी आवश्यक होगी।

अब पारंपरिक और सर्जिकल लड़ाई से नहीं चलेगा काम

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रक्षा विशेषज्ञ जेएस सोढ़ी का कहना है कि, ब्रह्मपुत्र पर चीन का ऊपरी तटवर्ती लाभ भारत को याद दिलाता है कि, एशियाई भू-राजनीति में जल राजनीति कितनी अहम हो गई है। पानी की असुरक्षा के कारण पाकिस्तान में आंतरिक अराजकता नई कमजोरियों को जन्म दे सकती है, जिससे देश के अंदर ही तनाव बढ़ सकता है। अफगानिस्तान की नाजुक काबुल नदी प्रणाली भी क्षेत्रीय स्तर पर संकट को बढ़ा सकती है। वैश्विक जलवायु परिवर्तन भी इस संकट को और बढ़ा सकता है। ऐसी स्थिति में, पानी को अब भारत की भव्य रणनीति का हिस्सा माना जाना चाहिए। यह अब केवल पर्यावरणीय या विकास का मुद्दा नहीं है। ऐसी स्थिति में, पानी को लेकर निष्क्रिय उदारता का युग समाप्त होना चाहिए। अब भारत केवल पारंपरिक या सर्जिकल तरीकों से आतंकवाद के खिलाफ नहीं लड़ेगा बल्कि वह व्यापार, जल, प्रौद्योगिकी, सूचना का भी इस लड़ाई में भरपूर इस्तेमाल करेगा।

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