



पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी भविष्यवाणी
बिलावल भुट्टो जरदारी ने उगला जहर
जम्मू कश्मीर ने बढ़ाई गई सैन्य संख्या
1960 में हुआ था सिन्धु जल समझौता
संधि का उल्लंघन किया बिना भी रोका जा सकता है पानी
संधि के तहत प्रस्तावित जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण में तेजी लाना, जैसे कि रैटल (850 मेगावाट) और पाकल दुल (1000 मेगावाट) बांध बनाना। जल भंडारण के अपने पूर्ण अधिकार का इस्तेमाल करना, यानी कि अनुमानित 3.6 मिलियन एकड़, जिसमें से अधिकांश का उपयोग नहीं किया जाता है।
नदी के जल के प्रवाह समय और भंडारण पैटर्न में बदलाव करना, जो सूक्ष्म लेकिन प्रभावी रूप से पाकिस्तान के बुवाई के मौसम को प्रभावित करेगा, जिससे वहां की फसलें प्रभावित होंगी।
नई परियोजनाओं के लिए प्रशासनिक मंजूरी में लेट करना, जिसके लिए दूसरे द्विपक्षीय परामर्श की जरूरत पड़ती है।
दुश्मन पर पड़ेगा मनोवैज्ञानिक दबाव
भारत के इन कदमों से पाकिस्तान में संवेदनशील कृषि चक्रों के दौरान स्थानीय बाढ़ या अस्थायी जल संकट हो सकता है, जिससे उस पर मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ेगा। हालांकि, इस रणनीतिक धैर्य की सीमायें हैं, लेकिन इसके दीर्घकालिक परिणाम देखने को मिलेंगे। ऐसे में ये मुद्दा पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र और अन्य मंचों पर उठा सकता है। सोढ़ी कहते हैं कि, पाकिस्तान पहले से ही दुनिया के सबसे अधिक जल-तनाव वाले देशों में से एक है। ऐसे में कोई भी नया जल जोखिम उसे और मुश्किल में डाल देगा। पाकिस्तान की 90% कृषि सिंधु नदी के पानी पर निर्भर है। इस व्यवधान से वहां के गेहूं, गन्ना और चावल की पैदावार पर बुरा असर पड़ सकता है।
आतंकवाद को खत्म करने के लिए नाकाफी है इंतजाम
वे कहते हैं कि, सिंधु जल संधि का कानूनी रूप से पालन करने के बावजूद भारत को पानी को ‘हथियार’ के रूप में इस्तेमाल करने के लिए उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आलोचना का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन इससे पाकिस्तान के आतंकी ढांचे को नेस्तनाबूद नहीं किया जा सकता है। जल संप्रभुता और नदी प्रबंधन को लेकर राष्ट्रीय भावना बढ़ सकती है। ये संकेत भूराजनीति में मायने रखते हैं। इनका उद्देश्य मनोवैज्ञानिक अधिक है।
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पाकितान को हराना होगा आसान
अगर भारत ने लंबे समय तक सिंधु का पानी रोक दिया, तो पाकिस्तान के शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में पानी की किल्लत हो जाएगी, जिससे देश में अशांति बढ़ेगी। इससे पाक आर्मी को भी आन्तरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इसके साथ ही, पर्याप्त अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति के बिना बार-बार की जाने वाली शिकायतें पाकिस्तान को और दुनिया से अलग-थलग करने का काम करेंगी। भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर बड़ा कदम उठाया है। यह मनोवैज्ञानिक के साथ-साथ कूटनीतिक युद्ध भी है, जिसमें पाकिस्तान को हराना और भी आसान होगा। साथ ही भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कोई जबाव नहीं देना होगा।
ये कदम उठाए भारत
भारत को चाहिए कि, वह सिंधु जल संधि के पानी को रोकने के लिए बांध परियोजनाओं को तेजी से पूरा करें।
बेहतर से बेहतर नदी प्रबंधन तकनीकों का इस्तेमाल करें
मजबूत जलविद्युत बुनियादी ढांचे की व्यवस्था करें।
ये सब करके भारत न सिर्फ अभी बल्कि भविष्य में पाकिस्तान के साथ होने वाले कूटनीतिक गतिरोधों के दौरान पानी को दबाव के रूप में इस्तेमाल कर सकता है। भारत के संतुलित दृष्टिकोण को रणनीतिक दृढ़ता और कानून के पालन के उदाहरण के रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है। घरेलू स्तर पर नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए भारत के भीतर नदी पारिस्थितिकी तंत्र की सावधानीपूर्वक निगरानी आवश्यक होगी।
अब पारंपरिक और सर्जिकल लड़ाई से नहीं चलेगा काम
रक्षा विशेषज्ञ जेएस सोढ़ी का कहना है कि, ब्रह्मपुत्र पर चीन का ऊपरी तटवर्ती लाभ भारत को याद दिलाता है कि, एशियाई भू-राजनीति में जल राजनीति कितनी अहम हो गई है। पानी की असुरक्षा के कारण पाकिस्तान में आंतरिक अराजकता नई कमजोरियों को जन्म दे सकती है, जिससे देश के अंदर ही तनाव बढ़ सकता है। अफगानिस्तान की नाजुक काबुल नदी प्रणाली भी क्षेत्रीय स्तर पर संकट को बढ़ा सकती है। वैश्विक जलवायु परिवर्तन भी इस संकट को और बढ़ा सकता है। ऐसी स्थिति में, पानी को अब भारत की भव्य रणनीति का हिस्सा माना जाना चाहिए। यह अब केवल पर्यावरणीय या विकास का मुद्दा नहीं है। ऐसी स्थिति में, पानी को लेकर निष्क्रिय उदारता का युग समाप्त होना चाहिए। अब भारत केवल पारंपरिक या सर्जिकल तरीकों से आतंकवाद के खिलाफ नहीं लड़ेगा बल्कि वह व्यापार, जल, प्रौद्योगिकी, सूचना का भी इस लड़ाई में भरपूर इस्तेमाल करेगा।