खंडहर में तब्दील हुआ फिलिस्तीन
फिलीस्तीन में परिवार के परिवार समाप्त हो गए हैं। कभी गुलजार रहने वाला गाजापट्टी आज खंडहर में तब्दील हो चुका है लेकिन इजराइल इस बार किसी भी तरह से रहम खाने के मूड में नहीं दिख रहाहै। तमाम देशों के दवाब के बाद भी वह पीछे नहीं हट रहा है। इजराइल का साफ़ कहना है की इस बार आर पार की लड़ाई है। इजराइल का कहना है की ये लड़ाई भले ही उसने नहीं शुरू की लेकिन अब खत्म वही करेगा। वह भी आतंकी संगठन हमास के खात्मे के साथ । दरअसल इस लड़ाई को हमास ने शुरू किया था, वह भी उस समय जब पूरा देश नींद की आगोश में था। यानी सुबह के छह बजे के आसपास, जब तक कोई कुछ समझ पता तब तक इजराइल में घुसे आतंकियों ने 1200 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया, इसमें 40 से अधिक तो नवजात थे, जो अभी दुनिया को देखना भी नहीं शुरू कर पाए थे। हमास के लड़ाकों ने उन्हें बड़ी ही निर्ममता से तलवारों से काट दिया था। इजराइल में हुई इस बर्बरता की तस्वीरें जब दुनिया के सामने आईं तो पूरा विश्व कांप उठा और कुछ मुस्लिम देशों को छोड़कर हर किसी ने इसकी कड़े शब्दों में निंदा ही नहीं की बल्कि इजराइल को हर तरह का समर्थन देने का भी ऐलान कर दिया।
मुस्लिम देशों से घिरा है इजराइल
दरअसल इजराइल एक यहूदी देश है, जिसकी उत्पत्ति एक लंबे संघर्ष के बाद या यूं कहें की दुनिया भर में बिखरे यहूदियों को सैकड़ों सालों बाद खुद का एक देश मिला था, लेकिन पड़ोसी देशों जैसी की फिलिस्तीन जार्डन, मिस्र और ईरान समेत अन्य मुस्लिम देश को ये कबूल नहीं था। उनका कहना है जिस जगह पर इजराइल बसा है वह उनकी जमीन है। अगर यहुंदियों को अलग देश देश बनाने की जगह देनी ही है तो कहीं और दी जाये, यहां नहीं। फिलिस्तीन पर हमास का कब्जा है और इजराइल उसे फूटी आंख भी नहीं सुहाता है। यही वजह है की वह जब तब उस पर मिसाइलें दागता रहता है। हमास की इस हिमाकत का जवाब इजराइल भी बखूबी देता है। कहा जाता है हमास को फिलिस्तीन और इजराइल से सटे गाजा पट्टी की जनता का पूरा समर्थन प्राप्त रहता है। सात अक्टूबर को हुए हमले के बाद जब इजराइल ने गाजापट्टी पर जवाबी कार्रवाई की तो कई हैरान करने वाले खुलासे हुए। जैसे की हमास ने लोगों के घरों, अस्पतालों और स्कूलों जैसे सार्वजनिक स्थानों से इजराइल तक सुरंगे बना रखी थी और वह अपनी सारी आतंकी गतिविधियां वहीं से चलाता था।
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तीन धार्मिक स्थलों का है केंद्र
कहा जाता है कि इस लड़ाई की जड़ इजराइल के कब्जे वाली जमीन पर स्थित येरुशलम है, जिस पर फिलिस्तीन की भी आस्था है और इजराइल की भी। साथ ही ईसाईयो की भी। दरअसल येरुशलम इस्लाम, यहूदी और ईसाई धर्मों में बेहद अहम स्थान रखता है क्योंकि पैगंबर इब्राहिम को अपने इतिहास से जोड़ने वाले ये तीनों ही धर्म येरूशलम में गहरी आस्था रखते है। वजह साफ़ है, येरुशलम में स्थित अल-अक्सा मस्जिद इस्लाम धर्म के लिए काफी अहम मानी जाती है। कहते हैं ये मस्जिद मक्का मदीना के बाद दुनिया भर के मुसलमानो के लिए तीसरा सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है। वहीं यहूदियों के लिए भी ये सबसे पवित्र जगह है। वे इसे टेम्पल टाउन कहते हैं। दूसरे शब्दों में इसे बेस्ट वाल भी कहा जाता है। इस वाल की तरफ मुंह करके यहूदी अपने इष्ट को याद करते हैं यहूदियों के लिए सबसे पवित्र स्थल ‘डोम ऑफ द रॉक’ भी इसी जगह स्थित है। ‘डोम ऑफ द रॉक’ में मुसलमानों की भी आस्था है। कहते के यहीं वह चट्टान है जिस पर पैगबर मोहम्मद अपने बेटे को बलि देने जा रहे थे और इसी स्थान से वे जन्नत गए थे। येरुशलम में यहूदी और मुसलमानों के साथ ही ईसाईयों की भी आस्था है। उनका मानना है कि यही वह स्थान है जहां पर ईसा मसीहा को सूली पर चढ़ाया गया था और यही पर वह दोबारा से अवतरित हुए थे। यह चर्च द चर्च आफ द होली सेपल्कर’ के नाम से भी मशहूर है। कहते हैं इसी के अंदर ईसा मसीहा का मकबरा भी स्थित है।
सदियों पुरानी है लड़ाई
येरुशलम को इजरायल औऱ फिलीस्तीनी दोनों ही देश अपनी राजधानी मानते हैं। इन दोनों देशों के बीच ये लड़ाई आज की नहीं बल्कि सदियों पुरानी है। कहते हैं ओटोमन साम्राज्य खत्म होने के साथ ही इस जगह को लेकर यहूदियों और मुसलमानो के बीच विवाद शुरू हो गया था। इतिहास पर गौर करें तो प्रथम विश्व युद्ध में ओटोमन साम्राज्य की हुई हार के बाद, मिडिल ईस्ट की पूरी तस्वीर बदल चुकी थी। अब इस स्थान पर वेस्ट बैंक का कब्जा हो चुका था। वहीं लोगों में राष्ट्रवाद की भावना भी पनपने लगी थी। इसी के साथ दुनिया भर में बिखरे यहूदियों ने भी अपने लिए एक स्वतंत्र देश की मांग करनी शुरू कर दी थी। इसी बीच दुनिया एक बार फिर से युद्ध की चपेट में आ गई। इस युद्ध में बड़ी संख्या में यहूदी मारे गए। दूसरे शब्दों में कहें तो यहूदियों का ऐसा नर संहार हुआ की पूरी दुनिया का रुख उनके प्रति बदल गया। दुनिया के तमाम देश उनके प्रति नरम रुख अपनाने लगे और उनकी अलग देश की मांग को भी दबे शब्दों में जायज मनाने लगे। नतीजा ये रहा कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव लाकर दोनों देशों यानी इजराइल और फलीस्तीन को अलग कर दिया गया। इसी के बाद साल 1947 में इजराइल का नाम पहली बार दुनिया के सामने आया।
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1948 में सामने आया था इजराइल
1947 में संयुक्त राष्ट्र में पास हुए बंटवारे के प्रस्ताव के तहत ब्रिटिश राज वाले इस इलाके को 2 भागों में बांट दिया गया, इसमें एक अरब इलाका और दूसरा यहूदियों का इलाका माना गया। संयुक्त राष्ट्र में पारित हुए प्रस्ताव में कहा गया की जहां यहूदियों की संख्या ज्यादा है उन्हें इस्राइल दिया जाएगा और जहां अरब बहुसंख्यक हैं, उन्हें फिलिस्तीन दिया जाएगा। तीसरा था येरूशलम, जिसे लेकर मतभेद था क्योंकि यहां मुस्लिम और यहूदी लगभग बराबर मात्रा में थे। ऐसे में इस इलाके पर अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण लागू करने का निर्णय लिया गया, लगभग एक साल तक संयुक्त राष्ट्र ने चले विचार विमर्श के बाद 14 मई 1948 को इजराइल का एक देश के रूप में उदय हुआ, लेकिन अफ़सोस इस देश को जन्म लेते ही युद्ध का सामना करना पड़ा। कहते है जिस दिन इजराइल एक देश के तौर पर दुनिया के सामने आया उसी दिन इसका विरोध करने वाले अरब देशों ने इस पर चौतरफा हमला कर दिया।
नुकसान पहुंचाने वालों को देता है मुंहतोड़ जवाब
ये युद्ध एक साल तक चला और 1949 में खत्म हुआ। युद्ध खत्म होने के साथ ही ब्रिटिश राज वाले ये पूरा हिस्सा तीन भागों में बंट गया, जिसे इज़रायल, वेस्ट बैंक और गाज़ा पट्टी का नाम दिया गया। इजराइल और अरब देशों के बीच युद्ध तो खत्म ही गया लेकिन दोनों के बीच कटुता आ गई। इस युद्ध में वैसे तो जीत इजराइल की हुई थी लेकिन अरब देशों ने इजराइल की कुछ जमीनों पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद से ही इजराइल इस ताक में बैठा था की कब वह इस इस जमीन को अरब देशों के कब्जे से मुक्त करा पायेगा। वह मौका उसे करीब डेढ़ दशक बाद साल 1966-77 में मिला। इस जंग में उसका मुकाबला वैसे तो सीरिया से था लेकिन सीरिया के साथ लेबनान, जार्डन मिस्र और इराक भी थे। छह दिनों तक चली इस जंग में इजराइल ने न सिर्फ जीत हासिल की बल्कि उसने दुश्मन देशों के कब्जे में गए बेस्ट बैंक और गाजापट्टी को भी छीन लिया। इसके बाद इजराइल ने इस इलाके में भी यहूदियों को बसाना शुरू कर दिया, जो फिलिस्तियों को किसी भी कीमत पसंद नहीं आ रहा है और वे जब तब इजराइल पर हमला कर उसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते है, जिसका जवाब भी उन्हें मुंहतोड़ मिलता है।
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