Home » अंतर्राष्ट्रीय » Trump Trade Threat: व्यापार को ढाल बनाकर कब तक जंग रोक पाएंगे ट्रंप?

Trump Trade Threat: व्यापार को ढाल बनाकर कब तक जंग रोक पाएंगे ट्रंप?

News Portal Development Companies In India
Trump Trade Threat

अमेरिका। Trump Trade Threat:डोनाल्ड ट्रंप की राजनीतिक रणनीति में, ब्रांड ट्रंप का व्यापार एक ऐसा उपकरण है, जो किसी भी वैश्विक भू-राजनीतिक समस्या का समाधान प्रस्तुत कर सकता है। ट्रंप का मानना है कि, आर्थिक दबाव (टैरिफ, प्रतिबंध या व्यापार समझौते) का इस्तेमाल करके देशों को उनकी नीतियां बदलने के लिए मजबूर किया जा सकता है। व्यापार का हवाला दे कर ट्रंप ने पुतिन और जेलेंस्की से रूस-यूक्रेन युद्ध रोकने को कहा है।

इसे भी पढ़ें- Trump’s Trade War: अमेरिका का पर क्या असर डालेगी ट्रंप की टैरिफ नीति, ये है एक्सपर्ट्स की राय

असली मुद्दों को किया नजरंदाज

Trump Trade Threat

भारत-पाकिस्तान संघर्ष के वक्त भी उन्होंने यही रणनीति अपनाई। उन्होंने कहा था कि, अगर भारत युद्ध रोक दे तो अमेरिका उसके साथ बड़े स्तर पर व्यापार करेगा, लेकिन इस रणनीति को अपनाते हुए ट्रंप रूस-यूक्रेन और भारत-पाकिस्तान के बीच टकराव के बुनियादी कारणों को भूल जाते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि, क्या ट्रंप असली मुद्दों को नजरअंदाज करके और व्यापार को ढाल बनाकर दो देशों के बीच टकराव रोक सकते हैं और अगर रोक भी पाए, तो कितने समय तक।

विश्वास बहाली जरूरी

भारत का पाकिस्तान के साथ मुख्य मुद्दा आतंकवाद है। इसके अलावा भारत और पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक दुश्मनी को खत्म करने के लिए विश्वास बहाली भी आवश्यक है। दूसरी तरफ पाकिस्तान कश्मीर को भारत के साथ अपना मुख्य मुद्दा मानता है। हैरानी की बात है कि, ट्रंप ऐसे ऐतिहासिक और भू-राजनीतिक मुद्दों को व्यापार के जरिए सुलझाना चाहते हैं। जहां तक ​​जम्मू-कश्मीर का सवाल है, भारत इसे पूरी तरह से द्विपक्षीय मसला मानता है, यानी भारत इस मसले में पाकिस्तान को सिर्फ दखल देने की इजाजत देता है। इसके अलावा भारत कई बार साफ तौर पर कह चुका है कि, अगर कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान से कोई बातचीत होगी, तो वह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को वापस लेने पर होगी।

ट्रंप ने की थी मध्यस्थता की पेशकश 

2019 में ट्रंप ने जम्मू-कश्मीर पर मध्यस्थता की पेशकश की थी, लेकिन भारत ने ट्रंप के दावे को तुरंत खारिज कर दिया था। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा था कि, भारत और पाकिस्तान के बीच अमेरिका की लंबी मध्यस्थता के बाद दोनों देश पूर्ण युद्धविराम पर सहमत हो गए हैं। इसके बाद ट्रंप ने कहा था कि, भारत की ओर से पाकिस्तान के साथ एक खतरनाक तनाव को खत्म करने के बाद वह खुश हैं।

व्यापार को बनाया हथियार

Trump Trade Threat

ट्रंप ने कहा था कि, वह दोनों देशों के साथ खूब व्यापार करेंगे। ट्रंप ने तब कहा था, “हम खूब व्यापार करने जा रहे हैं, आप लोग ये लड़ाई बंद करो, अगर आप इसे बंद करोगे, तो हम व्यापार करेंगे, अगर आप इसे बंद नहीं करोगे, तो हम व्यापार नहीं करेंगे।” एक भाषण में ट्रंप ने खुद कहा था कि जिस तरह से वह व्यापार कर रहे हैं, वैसा किसी और ने नहीं किया।

भारत ने किया ख़ारिज

ट्रंप ने कहा, भारत-पाकिस्तान ने कई वजहों से युद्ध रोक दिया है, लेकिन इसका एक बड़ा कारण व्यापार है। हम भारत के साथ व्यापार करने जा रहे हैं, हम पाकिस्तान के साथ व्यापार करने जा रहे हैं। यहां यह समझना जरूरी है कि, ट्रंप ने भारत के नजरिए से तनाव की मूल वजह आतंकवाद के बारे में कुछ नहीं कहा, इसलिए ट्रंप की व्यापार केंद्रित रणनीति इन गहरे मुद्दों (जैसे आतंकवाद) को संबोधित नहीं करती है। अगर पाकिस्तान फिर से भारत के खिलाफ आतंकवाद की नीति अपनाता है, तो दोनों देशों के बीच बनी शांति लंबे समय तक टिकने की संभावना नहीं है। इसके अलावा ट्रंप ने एक बार फिर कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की पेशकश की। भारत ने इस पेशकश को दृढ़ता से खारिज कर दिया और इसे द्विपक्षीय मुद्दा बताया।

रूस-यूक्रेन युद्ध में भी खेला व्यापार कार्ड

ट्रम्प ने रूस-यूक्रेन युद्ध को सुलझाने के लिए व्यापार और व्यक्तिगत कूटनीति को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया है, लेकिन यहां भी अमेरिकी राष्ट्रपति, रूसी राष्ट्रपति पुतिन की चिंता के मुद्दे को संबोधित करने में असमर्थ दिखते हैं और व्यापार कार्ड खेलते दिखते हैं। पुतिन के विचार में उन्हें यूक्रेन में सेना इसलिए भेजनी पड़ी, क्योंकि यूक्रेन के बहाने दुनिया के 32 शक्तिशाली देशों का संगठन नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) रूस के सामने आ गया था।

ये है रूस-यूक्रेन युद्ध का कारण

Trump Trade Threat

यूक्रेन भी नाटो में शामिल होकर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहता है, जो रूस के साथ उसके संघर्ष में उसकी मदद कर सकता है, लेकिन पुतिन इस विचार के सख्त खिलाफ हैं। नाटो को लगता है कि, रूस के पड़ोसी यूक्रेन को नाटो की सदस्यता दिलाकर वे पुतिन की गर्दन पकड़ सकते हैं, इस पूरे क्षेत्र में अपना प्रभाव दिखा सकते हैं और नाटो का उनकी सीमा के इतने करीब आना पुतिन को असुरक्षित महसूस कराता है। यही यूक्रेन-रूस युद्ध का कारण है।

इसे भी पढ़ें- Trump Action On Harvard University: हार्वर्ड यूनिवर्सिटी पर ट्रंप का एक्शन, रोकी 2.3 बिलियन डॉलर की फंडिंग

कई बार हो चुकी है पुतिन-ट्रंप की बात

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद डोनाल्ड ट्रंप इस युद्ध को खत्म करने के लिए कई बार पुतिन से बात कर चुके हैं। उन्होंने यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की से भी बात की है। इसके बावजूद ट्रंप नाटो के मुद्दे पर पुतिन से कोई ठोस वादा नहीं कर पा रहे हैं। सोमवार को ट्रंप ने कहा, उन्होंने पुतिन से 120 मिनट तक बात की है और इसके बाद पुतिन और जेलेंस्की युद्धविराम की दिशा में बात करने को राजी हो गए हैं। ट्रंप इसे अच्छा घटनाक्रम मानते हैं, लेकिन विडंबना यह है कि, वह वार्ता के इस स्तर तक पहुंचने के लिए व्यापार कारक को भी जिम्मेदार मानते हैं।

रूस में व्यापार की असीमित क्षमता

अमेरिकी राष्ट्रपति ने दावा किया कि जब यह युद्ध खत्म होगा, तो रूस बड़े पैमाने पर अमेरिका के साथ व्यापार करना चाहता है और वह इस बात से सहमत भी नजर आ रहे हैं। उन्होंने कहा, रूस में नौकरियां पैदा करने और पैसा कमाने की अपार क्षमता है। उन्होंने रूस की व्यापार करने की क्षमता को असीमित बताया। इसके बाद ज़ेलेंस्की के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, व्यापार से यूक्रेन को बहुत फ़ायदा हो सकता है और इस प्रक्रिया में यूक्रेन का पुनर्निर्माण भी किया जा सकता है।

प्रतिबन्ध के बावजूद युद्ध जारी रखा

ग़ौरतलब है कि, यूक्रेन युद्ध के दौरान अमेरिका ने रूस पर कई व्यापारिक और आर्थिक प्रतिबंध भी लगाए थे, लेकिन रूस ने 2024 तक तेल निर्यात से 180 बिलियन डॉलर कमाए, जिससे वह पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद युद्ध जारी रख सका। ट्रंप की व्यापार-केंद्रित रणनीति पुतिन की सैन्य और रणनीतिक प्राथमिकताओं को बदलने में विफल रही, क्योंकि रूस ने चीन और भारत जैसे देशों के साथ व्यापार बढ़ाकर आर्थिक दबाव कम किया।

मूल कारणों को नजरंदाज कर रहे ट्रंप

Trump Trade Threat

दरअसल समस्या यह है कि, व्यापार रियायतों की ट्रंप की बात युद्ध के मूल कारणों (जैसे यूक्रेन की संप्रभुता और रूस की सुरक्षा चिंताएं) को नज़रअंदाज़ करती है। दरअसल, भू-राजनीतिक समस्याओं को हल करने के साधन के रूप में व्यापार की अपनी सीमाएं हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार बढ़ाने की बात तब तक बेमानी है जब तक आतंकवाद और सीमा तनाव जैसे मुद्दों पर सहमति न हो। इसी तरह, रूस पर आर्थिक दबाव काम नहीं करता, क्योंकि वह दूसरे देशों (जैसे चीन और भारत) के साथ व्यापार के रास्ते खोज लेता है।

रवैये में बदलाव की जरूरत

ट्रंप की नीति अल्पकालिक आर्थिक दबाव या रियायतें तो दे सकती है, लेकिन गहरे और ज़्यादा जटिल मुद्दों को हल करने में विफल रहती है। भारत-पाकिस्तान के तनाव को व्यापार से जोड़ना या रूस को आर्थिक प्रोत्साहन देकर युद्ध को रोकने का प्रयास एक सतही समाधान है। दीर्घकालिक दृष्टिकोण से, युद्ध और तनाव को समाप्त करने के लिए व्यापार से अधिक कूटनीति, विश्वास निर्माण, क्षेत्रीय सहयोग, और दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता है।

 

इसे भी पढ़ें- US-China Tariff Dispute: अमेरिका-चीन ने घटाए टैरिफ, आपसी टकराव पर लगा ब्रेक

Leave a Comment

Modi 3.0 के पहले आम बजट से मिडिल क्लास को मिलेगी राहत?