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Modi-Trump Meeting: मोदी-ट्रंप की मुलाकात से बेचैन हुआ चीन, ड्रैगन को सताया ये डर

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Modi-Trump Meeting

नई दिल्ली। Modi-Trump Meeting: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिका दौरा ख़त्म हो चुका है। इस दौरे में दुनिया के सबसे शक्तिशाली और दुनिया के सबसे बड़े देश के नेताओं के बीच कई मुद्दों पर सहमति बनी, लेकिन इस दौरे से अगर कोई सबसे ज्यादा बेचैन हुआ है, तो वह है चीन, जो भारत के अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता है। पीएम मोदी की इस अमेरिकी यात्रा और डोनाल्ड ट्रंप से हुई मुलाकात पर चीन ने लगातार नजर बनाकर रखी। ऐसे में अब कई चीनी विशषज्ञों का मानना है कि मोदी-ट्रंप की इस मुलाकात का एक तीसरा पक्ष भी है, जो किसी सामने नहीं आया है।

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ट्रंप के ट्रेड वार के निशाने पर नहीं है भारत 

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एक रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि, चीन के फुदान यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर अमेरिकन स्टडीज और सेंटर फॉर साउथ एशियन स्टडीज के डायरेक्टर प्रोफेसर झांग जियाडोंग का कहना है कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार शुल्क, इमिग्रेशन वीजा जैसे कई और मुद्दे हैं, जिन पर मतभेद है, लेकिन ट्रंप के ट्रेड वॉर से भारत ज्यादा प्रभावित नहीं होगा, क्योंकि ट्रंप का लक्ष्य भारत को निशाना बनाना नहीं है। दरअसल, भारत, अमेरिका के बड़े व्यापारिक साझेदारों में शामिल नहीं है और न ही यह अमेरिका के व्यापार घाटे की बड़ी वजह है। इसके अलावा अमेरिका में भारतीय अवैध प्रवासियों की संख्या भी बहुत ज्यादा नहीं है।

चीन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा का अंदेशा 

वहीं, दुनिया में चीन के बढ़ते प्रभाव से भारत और अमेरिका दोनों ही चिंतित हैं। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि इस मुलाकात में चीन से जुड़े मुद्दों पर भी चर्चा हुई होगी, जिन्हें सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है। चीनी  विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी भारत-अमेरिका के संबंध काफी मजबूत हुए थे। उस वक्त मोदी ने दो बार अमेरिका का दौरा किया था और ट्रंप भी भारत आये थे। इस दौरान दोनों नेताओं ने अपने ‘भाईचारे’ का खुलकर प्रदर्शन किया और हर मौके एक-दूसरे की तारीफ करते रहे। ऐसे में अब डोनाल्ड के दोबारा से सत्ता में आने से भारत और अमेरिका के संबंधों को और मजबूती मिलेगी। इसकी शुरुआत भी दोनों देशों के नेताओं ने कर दी है।

शपथ ग्रहण में शामिल हुए थे एस. जयशंकर

बता दें कि, नवंबर में ट्रंप के चुनाव जीतते ही मोदी ने बिना देर उन्हें जीत की बधाई दी थी और उनके शपथ ग्रहण करने के चंद दिनों बाद ही वह उनसे मिलने अमेरिका चले गये। वहीं, ट्रंप के शपथ ग्रहण में शामिल होने के लिए भारत के विदेश मंत्री जयशंकर अमेरिका गये थे। इन सबसे साफ़ दिख रहा है कि भारत और अमेरिका के ये दोनों नेता एक-दूसरे के बेहद करीब हैं और दोनों देशों के संबंधों को मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

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बाइडन प्रशासन में आई थी रिश्तों में दरार 

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चीनी विशेषज्ञों का कहना है कि, जो बाइडन के कार्यकाल में मानवाधिकार, बांग्लादेश और खालिस्तान जैसे मुद्दों को लेकर भारत और अमेरिका के रिश्तों में हल्की दरार आ गई थी और दोनों देशों के बीच कूटनीतिक तनाव बढ़ गया था, जिसे अब ट्रंप प्रशासन में भरने की पूरी कोशिश की जाएगी। चीनी विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप के दोबारा से राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के तत्काल बाद जिस तरह से पीएम मोदी ने अमेरिका की यात्रा की है, उससे स्पष्ट पता चल रहा है कि भारत-अमेरिकी साझेदारी दोनों के लिए कितनी अहम है। रिपोर्ट्स के के मुताबिक, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के उन चुनिन्दा नेताओं में से एक हैं, जिन्हें ट्रंप में अहमियत दी है और सबसे पहले  बुलाया है। मोदी का ये दौरा इस बात का साफ संकेत अमेरिका, भारत को अपने सबसे करीबी सहयोगियों में रखता है। वह भारत को इजराइल और जापान के बराबर अहमियत दे रहा है।

चीन से किये गये वादों को लटका सकता है भारत 

अमेरिका और भारत के बीच बढ़ रही इस करीबी से चीन का चिंतित होना लाजमी है क्योंकि उसे अब इस बात का डर सताने लगा है कि कहीं ऐसा न हो कि भारत, चीन के साथ किये गये वादों को पूरा करने में देरी करने लगे। दरअसल, बीते महीने यानी जनवरी में भारत के विदेश सचिव चीन गये थे और उन्होंने चीनी विदेश मंत्री वांग यी और उप-विदेश मंत्री सुन वेइडॉन्ग से मुलाकात की थी। इस मुलाकात के बाद कई अहम ऐलान किये गये थे, जैसे कि भारत-चीन के बीच डायरेक्ट फ्लाइट्स फिर से शुरू करना और वीजा जारी करना। हालांकि चीनी विशेषज्ञों का कहना है कि अभी तक इन वादों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। इसके अलावा चीन की सबसे बड़ी चिंता कि इस बार वह शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहा है और इसमें वह भारत के पीएम मोदी की मौजूदगी चाहता है।

अमेरिका और चीन के साथ अलग-अलग व्यवहार करता है भारत

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बता दें कि भारत ने इस मंच पर अपनी सक्रिय भागीदारी की बात कही है, लेकिन उसकी आधिकारिक घोषणाओं में इस मुद्दे का खास जिक्र नहीं किया जाता है। जानकार बताते हैं कि भारत पिछले कुछ वर्षों से SCO में उत्साहजनक तरीके से भागीदारी नहीं करता है। ऐसे में चीन इस बार भारत को इस आयोजन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए राजी करने की कोशिश जुटा है। चीनी विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि भारत, चीन और अमेरिका के साथ अलग-अलग तरीके का व्यवहार कर रहा है। भारत को लेकर चीनी अकादमी ऑफ सोशल साइंसेज की प्रोफेसर हे वेनपिंग कहते हैं कि भारत और चीन के बीच बातचीत आमतौर पर छोटे स्तर की बैठकों से शुरू होती है। इसके बाद उच्च अधिकारियों या नेताओं तक पहुंचती है, लेकिन अमेरिका के साथ भारत का अलग रुख है। वहां, मोदी सीधे ट्रंप से मीटिंग कर रहे हैं और बड़े फैसले ले रहे हैं।

चीन का ये भी मानना है कि ट्रंप की वापसी भारत के लिए बेहद फायदेमंद हैं और उसे अपने रणनीतिक हित साधने का बेहतरीन मौका मिला है, लेकिन इससे भारत-चीन संबंध प्रभावित हो सकते हैं। हालांकि, चीन को लगता है कि ट्रंप की ‘अलग-थलग रहने’ और ‘संरक्षणवादी’ नीतियों से जुड़े जोखिमों का अंदाजा भारत को भी है। चीन का कहना है कि ट्रंप भारत की ‘मेक इन इंडिया’ पहल का कितना समर्थन करेंगे, इसे लेकर अभी कुछ स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है।

 

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