



Trump’s claim: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब से अमेरिका की सत्ता संभाली है, वे दुनिया के अन्य देशों को धौंस दिखाने और उन पर अपनी हुकूमत चलाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। अमेरिका में अवैध रूप से रहे प्रवासियों को अमानवीय तरीके से निकालने के साथ ही वे ब्रिक्स में शामिल देशों पर टैरिफ लगाने की धमकी जब-तब देते रहते हैं। वहीं अब उन्होंने ब्रिक्स को लेकर बड़ा दावा कर दिया है। ट्रंप का कहना है कि 150 फीसदी टैरिफ की धमकी के बाद पांच देशों का ये समूह बिखर गया है।
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नहीं सफल होने देंगे ब्रिक्स की कोशिश- ट्रंप
ट्रंप के कहा, ब्रिक्स को अमेरिकी डॉलर को चुनौती देने का खमियाजा भुगतना पड़ा रहा है। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स देश हमारे डॉलर को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं, वे व्यापार करने के लिए नई करेंसी लाना चाहते हैं, लेकिन उनकी ये कोशिशें सफल नहीं होंगी। उन्होंने कहा, जैसे ही मैं सत्ता में आया, मैंने साफ़ कर दिया कि ब्रिक्स में शामिल जो भी देश नई करेंसी की बात करेगा, उस पर 150 फीसदी का टैरिफ लगाया जायेगा। हमें आपके प्रोडक्ट की आवश्यकता नहीं है, इसके बाद ब्रिक्स तितर-बितर हो गया।
100 से 150 फीसदी टैरिफ लगाने की धमकी
बता दें कि, चुनाव जीतने के बाद और उससे पहले भी ट्रंप लगातार ब्रिक्स पर हमलावर रहे हैं। अमेरिका का राष्ट्रपति बनते ही उन्होंने ये स्पष्ट कर दिया था कि ब्रिक्स देश ये समझ लें कि वे डॉलर को किसी भी कीमत रिप्लेस नहीं कर सकते हैं और जो देश ऐसा करने की कोशिश करेगा उस पर 100 से 150 फीसदी का टैरिफ लगाया जायेगा। मालूम हो कि ब्रिक्स भारत, ब्राजील, रूस, मिस्र, चीन, दक्षिण अफ्रीका, इथियोपिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात देशों का एक समूह है, जिसमें तुर्की, अजरबैजान और मलेशिया ने भी सदस्य बनने के लिए आवेदन किया है। इसके अलावा कई और देश भी इसमें शामिल होना चाह रहे हैं
ट्रंप ने सोशल मीडिया पर शेयर की पोस्ट
हाल ही में ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म ट्रूथ सोशल पर एक पोस्ट शेयर कर कहा था कि, ब्रिक्स देश अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने, उसे रिप्लेस करने का प्रयास कर रहे हैं और हम सिर्फ तमाशबीन बने रहे, ऐसा नहीं होगा, हमारी इच्छा है कि ये हॉस्टाइल देश अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए न तो नई ब्रिक्स करेंसी बनाएं और न ही किसी अन्य करेंसी को सपोर्ट करें।’ ट्रंप ने अपनी पोस्ट में धमकी देते हुए आगे लिखा है कि, अगर ऐसा नहीं किया गया, तो ब्रिक्स देशों पर 100 फीसदी टैरिफ लगाया जाएगा। वहीं, अब उन्होंने ब्रिक्स के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा है कि, मुझे नहीं पता कि ब्रिक्स में इस समय क्या हो रहा है, हमने कुछ समय से उसके बारे में कुछ नहीं सुना।
व्लादिमीर पुतिन ने रखा था नई करेंसी का प्रस्ताव
गौरतलब है कि, साल 2022 में हुए 14वें ब्रिक्स समिट में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पहली बार नई करेंसी शुरू करने की बात की थी। पुतिन ने कहा था कि ब्रिक्स देशों को नई वैश्विक रिजर्व करेंसी शुरू करनी चाहिए। इसके बाद अप्रैल 2023 में पुतिन के इस प्रस्ताव का समर्थन करते हुए ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा ने कहा था कि ब्रिक्स बैंक जैसे संस्थान के पास ब्राजील और चीन या फिर ब्राजील या अन्य ब्रिक्स देशों के बीच व्यापार करने के लिए कोई नई करेंसी क्यों नहीं हो सकती है। दरअसल, ब्रिक्स देश चाहते हैं कि वे अपने आर्थिक हितों के लिए नई करेंसी शुरू करे ताकि अमेरिकी डॉलर और यूरो पर निर्भरता कम की जा सके।
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अमेरिका की विदेश नीति से परेशान हैं देश
माना जा रहा है कि वैश्विक वित्तीय चुनौतियों और अमेरिका की आक्रामक विदेश नीति से कई ब्रिक्स देश परेशान हो चुके हैं। यही वजह है कि वे अब नई करेंसी की जरूरत महसूस कर रहे हैं। इसके साथ ही इस जरूरत को तब और ज्यादा बल मिला जब अमेरिका ने रूस और चीन पर कई तरह के प्रतिबन्ध लगा दिए।
ब्रिक्स एंबेसेडर अनिल शुकलाल ने एक बातचीत में कहा कि 40 देशों ने इस समूह में शामिल होने की इच्छा जताई थी, जिनमें से छह देशों अर्जेंटीना, मिस्र, इथीयोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को 2023 में बतौर सदस्य इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था। तत्पश्चात ये देश जनवरी 2024 में ब्रिक्स संगठन के सदस्य बन गये। अब अगर बात करें कि ब्रिक्स देशों की नई करेंसी के प्रस्ताव को सुन कर अमेरिका क्यों भड़क गया है, तो जवाब है कि अगर नई करेंसी को मान्यता मिलती है तो इसका सीधा अमेरिकी डॉलर पर पड़ेगा और उसकी मांग में गिरावट आएगी। इसी को डी-डॉलराइजेशन कहा जाता है।
दशकों से दुनिया पर राज कर रहा है डॉलर
उल्लेखनीय है कि मौजूदा समय में पूरी दुनिया पर अमेरिकी डॉलर का राज है, विश्व का 90% व्यापार डॉलर के माध्यम से ही किया जाता है।
साल 2023 से पहले तक पेट्रोलियम का लगभग सौ फीसदी कारोबार अमेरिकी डॉलर में किया जाता था। हालांकि इसके बाद तेल व्यापार का करीब पांचवां हिस्सा यानी 20 फीसदी गैर अमेरिकी मुद्राओं में किया जाने लगा। ऐसे में अब अमेरिका को इस इस बात का डर सताने लगा है कि, यदि ब्रिक्स देशों की नई करेंसी की योजना सफल हो जाती है, तो दुनिया पर दशकों से राज कर रहे अमेरिकी डॉलर का वर्चस्व खतरे में पड़ जायेगा। वहीं एक्सपर्ट्स का भी कहना है कि यदि, कारोबार के लिए ब्रिक्स देश डॉलर के बजाए नई ब्रिक्स करेंसी का इस्तेमाल करने लगेंगे, तो इससे अमेरिका की प्रतिबन्ध लगाने की ताकत कम हो जाएगी। साथ ही डॉलर की कीमत भी घटेगी। इतना ही नहीं इसका प्रभाव अमेरिका में घरेलू स्तर पर भी देखने को मिल सकता है।
कम हुई है डॉलर की लोकप्रियता
यूएस फेडरल रिजर्व के आंकड़ों पर गौर करें तो 1999 से 2019 तक अमेरिका में 96 फीसदी वैश्विक व्यापार डॉलर में, एशिया प्रशांत क्षेत्र में 74 फीसदी कारोबार डॉलर में और बाकी दुनिया में 79 फीसदी कारोबार अमेरिकी डॉलर में हुआ था। हालांकि हाल के कुछ वर्षों में डॉलर के रिजर्व करेंसी शेयर में कमी आई है। इसकी वजह यूरो और येन की बढ़ती लोकप्रियता है। हालांकि अभी भी वैश्विक स्तर पर डॉलर का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जाता है।
पुतिन ने अमेरिका पर लगाया बड़ा आरोप
इधर, ब्रिक्स में शामिल सदस्य देशों और अन्य विकासशील देशों की मानें तो वे वैश्विक वित्तीय प्रणाली में अमेरिका के प्रभुत्व से परेशान हो चुके हैं। यही वजह है कि वे व्यापार के लिए नई करेंसी चाहते हैं। बता दें कि पिछले साल यानी अक्टूबर 2024 में कजान में हुए BRICS देशों के शिखर सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने खुलकर अमेरिका पर डॉलर को हथियार बनाने का आरोप लगाया था और इसे बड़ी गलती बताया था। पुतिन ने अपने संबोधन में कहा था कि, ऐसा नहीं हैं कि हम डॉलर का इस्तेमाल करने से इनकार कर रहे हैं, लेकिन अगर वे हमें काम नहीं करने दे रहे हैं, तो हम क्या कर सकते हैं? हमें तो अपने लिए विकल्प तलाशना ही होगा।
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