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Jinjira Massacre: आज भी जहन ने जिन्दा है वह काली रात, जब पाकिस्तान ने हजारों बंगालियों का कर दिया था कत्ल

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Jinjira Massacre:
ढाका: Jinjira Massacre: बांग्लादेश के इतिहास में 3 अप्रैल की तारीख एक ऐसा दिन है जिसे बांग्लादेशी कभी नहीं भूल सकते। यह तारीख उन्हे हमें हमेशा ये याद दिलाती रहेगी कि कैसे पाकिस्तान से आज़ादी के लिए लाखों बेगुनाह लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। जब पाकिस्तानी सेना ने मुक्ति आंदोलन को कुचलने के लिए हिंसक अभियान चलाया, तो तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में लोगों को उनके धर्म और जातीयता के आधार पर निशाना बनाया गया। जिंजिरा नरसंहार इसका एक उदाहरण है, जिसमें एक ही रात में हज़ारों लोगों की हत्या कर दी गई थी। आइए जानते हैं कि 3 अप्रैल 1971 को जिंजिरा में क्या हुआ था।
क्या था ऑपरेशन सर्चलाइट

Jinjira Massacre:

बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन को कुचलने के लिए पाकिस्तानी सेना ने 25 मार्च को ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया। ये नरसंहार ढाका में शुरू हुआ। यहां विश्वविद्यालय में घुसकर छात्रों और बुद्धिजीवियों का क़त्ल कर दिया गया। बचने के लिए लोग ढाका से नदी के दूसरी तरफ भागने लगे। इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने सैन्य कार्रवाई के लिए जिंजिरा और उसके आसपास के इलाकों को चिह्नित किया। यहां के इलाकों में ज्यादातर हिंदू परिवार रहते थे।
जब घर में घुस आए थे पाकिस्तानी सैनिक
एक रिपोर्ट के मुताबिक, जिंजिरा में हुए नरसंहार में बचे एक शख्स ने बताया कि, ‘पाकिस्तानी सैनिक हमारे घर में घुस आए। उन्होंने कमरे में छिपे मेरे तीन भतीजों को गोली मार दी। वे दूसरे कमरे में पलंग के नीचे छिपे थे, जिससे उनकी जान बच गई। इसी दौरान उनके चौथे भतीजे को भी गोली लग गई। शख्स का कहना है कि उस दिन उन्होंने अकेले 20 शव दफनाए थे। उन्होंने कहा, इन गांवों को आवामी लीग का गढ़ माना जाता था और यहां मुख्य रूप से हिंदू रहते थे।
हर तरफ हो रही थी गोलीबारी

Jinjira Massacre

ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू होने के बाद कई लोग ढाका से भागकर यहां पहुंचे थे। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया, पाकिस्तानी सेना ने इलाके को चारों तरफ से कंटीले तारों और बांस से घेर रखा था, ताकि कोई बचकर भाग न सके। अब्दुल हन्नान बांग्लादेश में संयुक्त राष्ट्र मिशन के पूर्व प्रेस काउंसलर रह चुके हैं। वे भी उन लोगों में शामिल थे, जो उस दौरान वहां छिपे हुए थे। उस भयावह घटना को याद करते हुए उन्होंने लिखा, ‘मैं अपनी पत्नी, बच्चों और मां के साथ वहां रुका था। 3 अप्रैल की सुबह पूरा इलाका अचानक से गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा।
कब्रिस्तान में छिपकर बचाई जान
हन्नान ने बताया, ‘गोले दाहिनी तरफ से आ रहे थे, इसलिए मैं अपने बच्चों और पत्नी को साथ लेकर उत्तर की तरफ भागने लगा। थोड़ी दूर चलने के बाद मैंने देखा कि, उत्तर से भी गोलीबारी हो रही है। फिर मैं पूर्व की ओर भागा, तभी मुझे अहसास हुआ कि गोलीबारी तो चारों तरफ से हो रही है।  जैसे तैसे, हम भागकर एक मस्जिद के पास पहुंचे और उसके पीछे स्थित कब्रिस्तान में छिप गये। उस कब्रिस्तान में और भी लोग छिपे हुए थे। उन्होंने कहा, पहले तो मैं थोड़ा हिचकिचाया कि, कब्रों में सांप और जहरीले कीड़े हो सकते हैं, फिर मुझे लगा कि सांप और कीड़े पाकिस्तानी सेना से ज्यादा खतरनाक नहीं होंगे।’
‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ कहने पर बक्शी जान

Jinjira Massacre:

हन्नान ने कहा, करीब आधे घंटे तक गोलीबारी होती रही। जब गोलियां चलनी बंद  हुई तो लोग कब्रों से बाहर आने लगे। उन लोगों ने मुझे कब्र से बाहर आने को कहा। इसके बाद मस्जिद के सामने भीड़ जमा हो गई थी, जो हत्या पर चर्चा कर रही थी। मेरी पत्नी की साड़ी पर कीचड़ और गोबर लगा हुआ था।’ अगली सुबह वह अपने पिता और परिवार के बाकी लोगों से मिले। उसने सभी से सुरक्षित मिलने को चमत्कार बताया। हन्नान के पिता ने उन्हें बताया कि, कैसे पाकिस्तानी सैनिकों ने उन पर बंदूक तान दी थी, तो वे उसने ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ कहकर चिल्लाने लगे, इसके बाद सैनिकों ने उन्हें छोड़ दिया, लेकिन बहुत से लोग इतने भाग्यशाली नहीं थे।
5, 000 लोगों  को उतारा मौत के घाट

Jinjira Massacre:

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, उस रात लगभग 5000 लोग मारे गए थे। इस निर्मम हत्या को नरसंहार कहा गया। यह बंगालियों के खिलाफ नस्लीय घृणा से प्रेरित एक विनाश अभियान था। इसकी तुलना केवल वियतनाम में माई लाई नरसंहार, बोस्निया में स्रेब्रेनिका, गाजा, कंबोडिया और रवांडा में हुए नरसंहार से की जा सकती है।

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