



नई दिल्ली। China Tariff War: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 7 अप्रैल को चीन के खिलाफ नए आर्थिक कदम उठाने की धमकी देते हुए कहा था कि, अगर चीन अपने हाल के 34 फीसदी प्रतिशोधी टैरिफ बढ़ोतरी को वापस नहीं लेता है, तो अमेरिका 9 अप्रैल से चीनी आयात पर अतिरिक्त 50 प्रतिशत टैरिफ लगा देगा। चीन ने मंगलवार 8 अप्रैल को इस धमकी का कड़ा जवाब दिया और कहा कि वह “टैरिफ ब्लैकमेल” से डरने वाला नहीं है।
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अधिकारों की रक्षा करेगा चीन
ट्रंप की धमकी पर प्रतिक्रिया देते हुए चीन ने कहा कि वह अपने अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए दृढ़ जवाबी कदम उठाएगा। चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “चीन के खिलाफ टैरिफ बढ़ाने की अमेरिकी पक्ष की धमकी एक बड़ी गलती है, जो एक बार फिर अमेरिकी पक्ष की ब्लैकमेलिंग प्रकृति को उजागर करती है।” इसके अतिरिक्त, चीन ने दुर्लभ-पृथ्वी तत्वों पर निर्यात नियंत्रण जैसे कड़े कदम उठाए हैं, जो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के लिए महत्वपूर्ण हैं।
शेयर बाजारों में उथल-पुथल
ट्रंप के इस ऐलान के बाद दुनियाभर के शेयर बाजारों में भारी उथल-पुथल देखने को मिली। हालांकि, मंगलवार 8 अप्रैल को भारतीय बाजार में थोड़ी रिकवरी देखने को मिली, लेकिन 7 अप्रैल को डाउ जोंस इंडस्ट्रियल एवरेज 1,212.98 अंक (3.17%) गिरकर 37,101.88 पर बंद हुआ, जबकि एसएंडपी 500 181.37 अंक (3.57%) गिरकर 4,892.71 पर बंद हुआ। नैस्डैक कंपोजिट 623.23 अंक (4%) गिरकर 14,964.56 पर बंद हुआ। यह गिरावट टेक्नोलॉजी सेक्टर में 2025 में सबसे बड़े नुकसान के साथ आई, जहां एप्पल, एनवीडिया और माइक्रोसॉफ्ट जैसे बड़े नामों ने क्रमशः 30%, 34% और 19% की गिरावट दर्ज की।
एशिया में स्थिति गंभीर
एशिया में भी स्थिति गंभीर रही। टोक्यो का निक्केई इंडेक्स 7.1% गिरा, जो दशकों में एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट थी। चीन, हांगकांग और ताइवान के बाजारों में भी भारी गिरावट आई, खासकर इसलिए क्योंकि ये बाजार पहले छुट्टियों के कारण बंद थे और सोमवार को वैश्विक गिरावट के साथ तालमेल बैठने की कोशिश कर रहे थे। भारत में, बीएसई सेंसेक्स और निफ्टी 50 में शुरुआती 5% की गिरावट देखी गई, जो मार्च 2020 के बाद सबसे बड़ी गिरावट थी, हालांकि बाद में मामूली सुधार हुआ। विश्लेषकों का मानना है कि, यह टैरिफ युद्ध वैश्विक मंदी की आशंकाओं को बढ़ा रहा है। ब्लैकरॉक के सीईओ लैरी फिंक ने न्यूयॉर्क इकोनॉमिक क्लब में कहा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था पहले ही मंदी में प्रवेश कर चुकी है और शेयर बाजार में 20% की और गिरावट संभव है।
जा सकती हैं लाखों नौकरियां
सोमवार 7 अप्रैल को ट्रंप ने पत्रकारों से कहा कि, वे टैरिफ नीति को रोकने या नरम करने के मूड में नहीं हैं। उन्होंने कहा, “हम इसे रोकने के बारे में नहीं सोच रहे हैं।” यह बयान तब आया जब सभी देशों के नेता और निवेशक उनसे राहत की उम्मीद कर रहे थे। वहीं, चीन ने ट्रंप की ताजा धमकी को गलती पर गलती करार दिया और रोनाल्ड रीगन के 1987 के व्यापार युद्ध विरोधी भाषण का हवाला देते हुए कहा कि इससे बाजार गिर सकते हैं और लाखों नौकरियां जा सकती हैं। बीजिंग ने संकेत दिया कि, वह और जवाबी कदम उठा सकता है।
दबाव में एशियाई बाजार
सोमवार सुबह कुछ उतार-चढ़ाव के बाद अमेरिकी बाजारों में स्थिरता के संकेत दिखे, लेकिन एशियाई बाजार अभी भी दबाव में हैं। यूरोपीय संघ ने भी जवाबी टैरिफ लगाने की योजना बनाई है, जिससे व्यापार युद्ध का दायरा बढ़ गया है।
उद्योग प्रभावित
उधर, ऐपल जैसी कंपनियां भारत और चीन से आईफोन की शिपमेंट बढ़ाकर टैरिफ के असर को कम करने की कोशिश कर रही हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि, लागत में वृद्धि से उपभोक्ता कीमतें बढ़ सकती हैं।
वैश्विक मांग पर पड़ेगा असर
जेपी मॉर्गन चेस के सीईओ जेमी डिमन ने चेतावनी दी कि, ट्रम्प के टैरिफ के कारण वैश्विक मांग गायब हो सकती है और अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति कमजोर हो सकती है।
कीमतें बढ़ेगी, चेन सप्लाई बाधित होगी
ट्रंप की नीति उनके “अमेरिका फर्स्ट” एजेंडे का हिस्सा है, लेकिन यह विश्व अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम भरा दांव साबित हो रहा है। एक तरफ, उनका दावा है कि इससे अमेरिका को हर हफ्ते अरबों डॉलर का राजस्व मिलेगा और महंगाई भी नहीं होगी। हालांकि, विशेषज्ञ इससे सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि टैरिफ से कीमतें बढ़ेंगी, आपूर्ति शृंखलाएं बाधित होंगी और मंदी का खतरा बढ़ेगा। दूसरी तरफ, चीन जैसे देशों की जवाबी कार्रवाई से यह संकट और गहरा सकता है।
भारत भी होगा प्रभावित
डोनाल्ड ट्रंप की चीन को 50% अतिरिक्त टैरिफ लगाने की धमकी ने न केवल चीन बल्कि सभी बाजारों को हिलाकर रख दिया है। 8 अप्रैल तक यह स्पष्ट है कि, यह टकराव अभी खत्म नहीं हुआ है। अगर चीन आज के अंत तक अपना रुख नहीं बदलता है, तो 9 अप्रैल से नई टैरिफ दरें लागू हो सकती हैं, जिसके दूरगामी परिणाम होंगे। यह स्थिति न केवल अमेरिका और चीन के लिए बल्कि भारत जैसे अन्य व्यापारिक साझेदारों के लिए भी चुनौतीपूर्ण है, जो इस अस्थिरता के बीच अवसर और जोखिम दोनों देख रहे हैं।
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