



नई दिल्ली। NASM MR Cruise Missile: अपनी ताकत बढ़ाने के लिए भारतीय नौसेना अपने बेड़े में स्वदेशी नेवल एंटी शिप मिसाइल-मीडियम रेंज (एनएएसएम-एमआर) शामिल करेगी। दुश्मन के लिए विनाशकारी इस मिसाइल को मीडियम रेंज एंटी शिप मिसाइल (MRASHM) के नाम से भी जाना जाता है। इस मिसाइल को बोइंग पी-8आई पोसाइडन विमान में लगाया जाएगा। इस काम में बोइंग कंपनी मदद करेगी। इसका मकसद नौसेना के पास पहले से मौजूद हार्पून एजीएम-84डी मिसाइलों की ताकत को और बढ़ाना है। इससे भारतीय नौसेना हिंद महासागर में किसी भी खतरे से निपटने के लिए और भी मजबूत हो जाएगी। इस मिसाइल को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने बनाया है।
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बढ़ेगी समुद्री ताकत
आइए जानते हैं इसकी पूरी खूबियां और कहानी। एंटी शिप मिसाइलों को रेडियो कमांड के जरिए पूरे रास्ते निर्देशित किया जाना भी संभव है। भारतीय नौसेना अपनी समुद्री ताकत को और भी मजबूत करने की तैयारी कर रही है। इसके लिए नौसेना अपने बेड़े में स्वदेशी रूप से विकसित नेवल एंटी शिप मिसाइल-मीडियम रेंज (एनएएसएम-एमआर) को शामिल करेगी। इस मिसाइल को बोइंग पी-8आई पोसाइडन समुद्री गश्ती विमान पर लगाया जाएगा। इस काम में बोइंग कंपनी भी मदद करेगी। इस कदम का मकसद नौसेना के पास पहले से मौजूद हार्पून एजीएम-84डी एंटी शिप मिसाइलों की क्षमता को और बढ़ाना है। इससे भारतीय नौसेना हिंद महासागर क्षेत्र में किसी भी चुनौती का सामना करने में और भी ज्यादा सक्षम हो जाएगी।
आसान हो जाएगी ट्रेनिंग
NASM-MR मिसाइल को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने विकसित किया है। भारत सरकार की रक्षा एजेंसी DRDO की यह मिसाइल नौसेना के मिग-29K लड़ाकू विमान के लिए पहले से ही तैयार है। इसे राफेल मरीन और आने वाले ट्विन इंजन डेक बेस्ड फाइटर (TEDBF) में भी लगाया जाएगा। अब इसे P-8I विमान में लगाने से यह फायदा होगा कि, एक ही तरह के हथियारों का इस्तेमाल अलग-अलग तरह के विमानों में किया जा सकेगा। इससे रखरखाव और ट्रेनिंग आसान हो जाएगी।
DRDO and Indian Navy successfully flight tested Naval Anti Ship Missile Short Range (NASM-SR) on 25 Feb 2025 from ITR, Chandipur. The trials have proven the missile’s Man-in-Loop feature and scored a direct hit on a small Ship target in sea-skimming mode at its maximum range pic.twitter.com/ykNTYl2RKR
— DRDO (@DRDO_India) February 26, 2025
हर मौसम में करेगी काम
NASM-MR एक ऐसी मिसाइल है जो हर मौसम में काम करने में सक्षम होगी। इसका मतलब यह है कि यह बारिश हो, धूप हो या खराब मौसम। हर कंडीशन में ये दुश्मन के जहाज को निशाना बना सकती है। यह बहुत लंबी दूरी से दुश्मन के जहाज को निशाना में भी सक्षम होगी। इसका निर्माण खास तौर पर छोटे और मध्यम आकार के युद्धपोतों को तबाह करने के लिए किया गया है। जैसे फ्रिगेट, कोरवेट और डिस्ट्रॉयर।
लंबी दूरी से हमला करने में सक्षम
शुरुआत में इसे मिग-29के से लॉन्च करने के लिए बनाया गया था। एयरो इंडिया 2025 में भी इसे मिग-29के पर दिखाया गया था। अब नौसेना इसे पी-8आई पर भी इस्तेमाल करना चाहती है। पी-8आई ऐसा विमान है जो लंबी दूरी तक निगरानी और हमला कर सकता है। समुद्र में दूर तक निगरानी और दुश्मन पर हमला करने के लिए यह विमान काफी उपयोगी है।
पी-8आई में भी किया जायेगा इस्तेमाल
पी-8आई विमान का निर्माण बोइंग कंपनी करती है, इसलिए पी-8आई में इस मिसाइल को लगाने में मदद मिलेगी। बोइंग अपने अनुभव का इस्तेमाल कर विमान के वेपन बे में मिसाइल को फिट करेगी और मिशन सिस्टम को भी दुरुस्त करेगी। वेपन बे विमान का वह हिस्सा होता है, जहां हथियार रखे जाते हैं।
सटीक निशाना लगाने में कारगर
नौसेना ऐसा इसलिए कर रही है, ताकि पी-8आई की हमला करने की क्षमता को बढ़ाया जा सके। फिलहाल पी-8आई हार्पून एजीएम-84डी मिसाइल से लैस है, जो एंटी शिप मिसाइल है। हिंद महासागर में चीन और पाकिस्तान जैसे समुद्री खतरों से निपटने में ये मिसाइल काफी सटीक और कारगर साबित होगी। दुश्मन भी हमला करने से पहले सौ बार सोचेगा।
250 किमी तक कर सकती है वॉर
NASM-MR मिसाइल हार्पून AGM-84D से बेहतर है। हार्पून मिसाइल अमेरिका में बनी है और इसकी रेंज करीब 124 किलोमीटर है। रेंज का मतलब है कि मिसाइल कितनी दूर तक जा सकती है, जबकि NASM-MR की रेंज इससे ज्यादा है और इसमें कई नए फीचर भी हैं। यह मिसाइल 250 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तक वार कर सकती है। कुछ मॉडल 350 किलोमीटर तक जा सकते हैं, जिनमें सॉलिड-फ्यूल रॉकेट बूस्टर होगा। सॉलिड-फ्यूल रॉकेट बूस्टर मिसाइल को तेजी से आगे बढ़ने में मदद करता है।
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NASM-MR में हुआ है आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल
यह मिसाइल एक्स-बैंड आरएफ सीकर जैसे आधुनिक सिस्टम से लैस है। इससे यह दुश्मन के जहाजों को बिल्कुल सटीकता से निशाना बना सकती है। एक्स-बैंड आरएफ सीकर एक ऐसा सिस्टम है जो दुश्मन के जहाजों को खोजने और उन पर निशाना लगाने में मदद करता है। हार्पून मिसाइल पुरानी तकनीक पर बनी है, लेकिन NASM-MR में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इसके एवियोनिक्स और सीकर सिस्टम का इस्तेमाल DRDO के दूसरे मिसाइल प्रोग्राम में भी किया गया है। एवियोनिक्स विमान के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम होते हैं। इससे इसकी मारक क्षमता और बढ़ जाती है।
MiG-29K, Rafale M और आने वाले TEDBF में लगाया जायेगा
NASM-MR को P-8I विमान के साथ-साथ MiG-29K, Rafale M और आने वाले TEDBF जैसे विमानों में भी लगाया जाएगा। इससे नौसेना को फायदा होगा, क्योंकि वह अलग-अलग जगहों से अपनी ताकत दिखा सकेगी। वह अपने विमानवाहक पोतों और तट-आधारित समुद्री गश्ती विमानों दोनों से हमला कर सकेगी। विमानवाहक पोत ऐसे जहाज होते हैं, जिन पर हवाई जहाज उतर सकते हैं और उड़ान भर सकते हैं। तट-आधारित समुद्री गश्ती विमान ऐसे विमान होते हैं जो समुद्र के किनारे से निगरानी रखते हैं।
कम होगी विदेशी हथियारों पर निर्भरता
P-8I विमान पहले से ही टॉरपीडो और हार्पून मिसाइलों से लैस है। टॉरपीडो एक ऐसा हथियार है जो पानी में चलता है। अब इसमें एक और लंबी दूरी की मिसाइल होगी जो भारत में ही बनी है। इससे विदेशी हथियारों पर निर्भरता कम होगी और भारत सरकार के ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान को भी बढ़ावा मिलेगा।
DRDO ने 2023 में पूरी किया था डिजाइन
NASM-MR मिसाइल बनाने का काम बहुत तेजी से चल रहा है। DRDO ने नवंबर 2023 में इसका शुरुआती डिजाइन पूरा कर लिया था। अब इसके एयरोडायनामिक कॉन्फ़िगरेशन को अंतिम रूप देने के लिए विंड टनल टेस्टिंग की जा रही है। एयरोडायनामिक कॉन्फ़िगरेशन का मतलब है कि मिसाइल हवा में कैसे उड़ेगी। विंड टनल टेस्टिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें मिसाइल को हवा में उड़ाकर देखा जाता है कि यह कैसा प्रदर्शन करती है। इस मिसाइल के ट्रायल भी जल्द ही शुरू होने वाले हैं, क्योंकि इसके गाइडेंस, नेविगेशन और प्रोपल्शन सिस्टम का इस्तेमाल पहले से ही दूसरे भारतीय मिसाइल प्रोजेक्ट्स में किया जा चुका है।
‘हार्पून-क्लास’ मिसाइल से ज्यादा हैं खूबियां
गाइडेंस सिस्टम मिसाइल को सही दिशा में ले जाता है। नेविगेशन सिस्टम मिसाइल को उसकी जगह बताता है। प्रोपल्शन सिस्टम मिसाइल को आगे बढ़ाता है। ब्रह्मोस और NASM-SR (शॉर्ट रेंज) की तरह, इसलिए, इसे ज्यादा टेस्टिंग की जरूरत नहीं पड़ेगी और इसे जल्द ही इस्तेमाल के लिए तैयार किया जा सकेगा। NASM-MR के चालू होने के बाद यह ‘हार्पून-क्लास’ मिसाइल की तरह काम करेगी, लेकिन इसमें हार्पून से ज्यादा खूबियां होंगी।
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