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Mount Everest: कमजोरी की बनाया ताकत, माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली भारत की पहली नेत्रहीन महिला बनीं छोंज़िन एंगमो

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Mount Everest
शिमला। Mount Everest: कहते हैं न कि अगर कुछ करने की चाह हो, तो परिस्थितियां बाधक नहीं बन सकतीं। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले की छोंज़िन एंगमो ने भी कुछ ऐसा कर दिया है, जो किसी सपने से कम नहीं है। छोंज़िन माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली भारत की पहली और दुनिया की पांचवीं दृष्टिहीन महिला बन गई हैं। नेत्रहीन छोंज़िन ने तमाम मुश्किलों को पार करते हुए दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत पर तिरंगा फहराया।
आठ साल की उम्र में खोई आंख की रौशनी

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बताया जाता है कि छोंज़िन ने आठ साल की उम्र में अपनी आंखों की रोशनी खो दी थीं, लेकिन उन्होंने अपनी इस कमजोरी को कभी भी अपनी सफलता के रास्ते का रोड़ा नहीं बनने दिया। हेलेन केलर को अपना आदर्श मानने वाली छोंजिन उनकी इस पंक्ति पर बहुत विश्वास करती हैं कि, दृष्टि होना, लेकिन दृष्टि न होना अंधे होने से भी बदतर है। आठ साल की उम्र में आंखों की रौशनी जाने के बाद छोंजिन एंगमो ने अपनी कमजोरी को ही अपनी ताकत बना लिया है और इतिहास रचने के रास्ते पर चल पड़ीं। उनका मानना ​​है कि, अभी तो उनकी कहानी अभी शुरू हुई है। अभी तो वे और चोटियों को भी फतह करेंगी।
दृष्टिहीनता को बनाया ताकत 
भारत-तिब्बत सीमा के पास चांगो गांव में जन्मी एंगमो ने आठ साल की उम्र में अपनी आंखों की रोशनी खो दी थी, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से स्नातक और परास्नातक की पढ़ाई पूरी की। वर्तमान समय में वह दिल्ली में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में ग्राहक सेवा सहयोगी के पद पर तैनात हैं। एंगमो का कहना है कि, मेरी कहानी अभी शुरू हुई है, मेरी दृष्टिहीनता मेरी कमजोरी नहीं बल्कि मेरी ताकत है।
पहाड़ों पर चढ़ने का है शौक

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उन्होंने कहा,बचपन से मेरा शौक था कि मैं पहाड़ों पर चढूं, लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से मैं अपने इस सपने को पूरा नहीं कर पा रही थी। एंगमो ने कहा, अब मैं बाकी चोटियों पर भी चढ़ाई करुंगी। बता दें कि, छोंजिन अक्टूबर 2024 में एवरेस्ट बेस कैंप (5,364 मीटर की ऊंचाई पर स्थित) तक ट्रेक करने वाली पहली नेत्रहीन भारतीय महिला बनीं। वह लद्दाख में माउंट कांग यात्से 2 (6,250 मीटर) पर भी चढ़ चुकी हैं।
चुनौतियों को अवसर में बदला
उनके पिता अमर चंद ने कहा,  उनकी बेटी ने उन्हें गौरवान्वित किया है। वे उसकी सभी उपलब्धि से खुश हैं, हालांकि अभी उन्हें पूरी जानकारी नहीं मिल पाई है, वे उसके लौटने का इंतजार कर रहे हैं। एंगमो की इस सफलता से गांव के लोग भी बेहद खुश हैं। उनके एक रिश्तेदार यामचिन का कहना है कि, एंगमो बचपन से ही साहसी और दृढ़ निश्चयी थी। उनके जीवन के चुनौतियां आईं, लेकिन उन्होंने अपनी हर चुनौती को अवसर में बदल दिया।
तैराकी में जीत चुकी हैं स्वर्ण पदक 
एंगमो  खेल के प्रति भी काफी जुनूनी हैं। उन्होंने राज्य स्तर पर तैराकी में स्वर्ण पदक जीता है और राष्ट्रीय स्तर की जूडो चैंपियनशिप में भी भाग लिया है। इसके अलावा, वह राष्ट्रीय स्तर की मैराथन प्रतियोगिताओं में दो कांस्य पदक भी जीत चुकी हैं। उन्होंने तीन बार दिल्ली मैराथन के साथ-साथ पिंक मैराथन और दिल्ली वेदांत मैराथन में भी शामिल हो चुकी हैं। रिश्तेदार ने बताया, एंगमो जोनल और राष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल भी खेलती थीं।
सियाचिन ग्लेशियर पर भी कर चुकी हैं चढ़ाई

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पहाड़ों पर चढ़ने के अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने 2016 में अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण और संबद्ध खेल संस्थान से बेसिक पर्वतारोहण पाठ्यक्रम पूरा किया और उन्हें सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षु चुनी गईं। वे साल 2021 में ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम के अंतर्गत दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर पर चढ़ने वाले विकलांग लोगों की टीम में एकमात्र महिला पर्वतारोही भी थीं। इसमें सफलता हासिल कर उन्होंने एक नया विश्व रिकॉर्ड बनाया। उनकी उपलब्धियों का उल्लेख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात रेडियो प्रसारण में भी किया गया था।
मिल चुके हैं कई अवार्ड
‘मन की बात’ में पीएम ने उनकी टीम को पहचाना और प्रशंसा की। पिछले साल यानी 2024 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से उन्हें विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिए सर्वश्रेष्ठ दिव्यांगजन राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा था। वह एनएबी मधु शर्मा यंग अचीवर अवार्ड, दिल्ली में नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड से अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस पुरस्कार और केविनकेयर एबिलिटी मास्टरी अवार्ड से भी सम्मानित की जा चुकी हैं।

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