



डॉ. अजय कुमार तिवारीमुझे नींद में चलने की बीमारी है। यह कभी-कभी मुझे छत पर ले जाती है और ब्रश करने के बहाने रात के तारों से बात करता हूं और चंद्रमा के साथ समय बिताया और लौट आता हूं। ऐसा ही हुआ आज जब मैं रात को टहलते प्रतापपुर नाका पर पहुंचा। यहां एक ऐसे आदमी से मुलाकात हो गयी जिसके शरीर कपड़े के नाम पर मात्र एक धोती थी, पैर में चमरौधा चप्पल और हाथ में लाठी। मैं कुछ देर विस्मृत भाव से देखता रहा और वह भी मुझे परखते रहे। कुछ क्षणों में वे तेजी से पास आ कर पूछे क्या बात है, रात को क्यों टहल रहे हो? मैं कुछ बोलता… इससे पहले उन्होंने कहा कि जब टहलना ही है तो आओ मेरे साथ सोते हुए शहर को जागते हुए देखते हैं।
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रिंग रोड से आगे बढ़े और वार्तालाप शरू हो गयी। उन्होंने पूछा कि तुम पत्रकार रहे हो, बताओ पढ़ना-लिखना कैसा चल रहा है? हां, कुछ कहानियों की किताबें हैं जिसे पढ़ा जा रहा है। उन्होंने फिर पूछा… मैं तुम्हारी कहानी नहीं पूछ रहा। मुझे तो सबकी पढ़ाई के बारे में बात करना है। मैंने कहा कि हां, राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू हो गयी है। सेमेस्टर से पढ़ाई हो रही है। स्कूल शिक्षा भी निजी और शासकीय दो वर्गों में बंट चुकी है। जो धनाढ्य अभिभावक हैं अपने बच्चों को दूर भेज कर पढ़ा लेते हैं। यह वही है कि बाहर का माल घर में बेच लिया जाता है। यहां धन से योग्यता तौल लिया जाता है। श्रीनिवास में सरस्वती की बात होती है। उन्होंने तेजी से पूछा कि क्या सभी के लिए समान शिक्षा नहीं है? मैं मौन हो गया। मेरी चुप्पी को वो समझ गये। उम्र और सादगी में तो वो मुझसे कई गुना बड़े रहे, उनसे मैं तुलना नहीं कर सकता लेकिन उनके कदमों की चाल हमसे तेज थी। मैं उनकी बराबरी में नहीं चल पा रहा था।
उन्होंने फिर तीखा सवाल किया, तेज चलो। मैं कुछ बोलता कि इससे पहले वह पानी से भरे गड्ढे में लड़खड़ा गये। उन्होंने कहा कि सड़कों की हालत बहुत खराब है। मुझे जी, कहने के अलावा कुछ नहीं दिखा। वो तेजी से अस्पताल की ओर बढ़े। पूछे? बहुत गंदगी है? इलाज कैसा चल रहा है? मैंने कहा कि इलाज तो है लेकिन निजी चिकित्सालय सेवा को रोजगार के रूप में अत्याचार,शोषण का केन्द्र बना चुके हैं। मरीज पहुंच गया तो उसे मरने के बाद भी कीमत चुकानी होती है। बीमा के पैसे पर चिकित्सालयों को बढ़ा खेल है। उन्होंने नाराजगी दिखाते हुए पूछा कि दवाओं की हालत कैसी है? दवायें तो मिलती है लेकिन महंगाई परेशान कर रही है। जांच केन्द्र हमेशा लूटने को तैयार बैठे हैं। हमारे चिकित्सक भी उन्हीं के पाले में हैं।
कदमों को धीरे करते हुए उन्होंने कहा कि मनोरंजन, साहित्य की क्या स्थिति है? मनोरंजन के नाम पर सिनेमा हाॅल हैं जो नियमित चलते हैं। फिल्में दिखायी जाती हैं जो आम जनता की क्रय शक्ति से बाहर होती हैं। कवि सम्मेलन, गोष्ठियों पर सवाल तो बहुत ही तीखा था। जवाब देते नहीं बन रहा था। कवि सम्मेलन तो नाम मात्र के होते हैं जिनमें कवि कम और उपकृत होने वाले ज्यादा रहते हैं। गोष्ठियों में तथ्यगत बातें नहीं होती हैं जिसमें लोग जाना ही पसन्द नहीं करते हैं। बौद्धिक खुराक देने वाले भी इतने खेमे में बंटे हैं कि अपना हिस्सा दिखता नहीं।
मैं किस खेमें में जाऊं पता ही नहीं चलता। इतने में वो जल, जंगल, जमीन पर बात करने लगे। उन्होंने पूछा पर्यावरण तो ठीक है ना? मैंने कहा हां, ठीक है। पहाड़ियों पर कब्जे हो रहे हैं। पेड़ों की कटाई हो रही है। खदान बनाने के लिए जंगल साफ किये जा रहे हैं। आने वाले दिनों में कार्बन उत्सर्जन बढ़ेगा और सांस लेने के लिए आक्सीजन नहीं मिल पायेगा। उन्होंने तेजी से कहा क्या ? पानी की तरह आक्सीजन भी बेचोगे? मैं चुप रहा।
उन्होंने कहा कि तालाबों की क्या स्थिति है? तालाब तो पानी को रिसाइकिल कर रहे हैं? मैंने कहा कि तालाब अब शहर की गंदगी को नहीं ढो पा रहे हैं। उनमें रासायनिक, भारी तत्व, गंदगी ज्यादा बहाई जा रही है। तो तुम छठ कैसे मनाओगे? भगवान सूरज ऊर्जा के सबसे बड़े स्रोत हैं, उन्हें अर्ध्य तो देना है? मैंने कहा हां। घर से बोतल का पानी ले जांऊगा, उसी पानी से अर्ध्य दिया जायेगा। जल, जंगल, जमीन, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क की हालत के बाद उन्होंने बाजार पर सवाल किया।
बाजार तो अब सामान नहीं जरूरतें पैदा कर रहा है। प्रत्येक उत्पाद को एक महिला पैकेट पर बेचती हुई नजर आती है। उन्होंने पूछा कि आधुनिकता, तकनीकी, भौतिकवाद का क्या हाल है? मैं समझ नहीं पा रहा था, क्या बताऊं। हां, प्रतिदिन सुबह डेढ़ जीबी डाटा खत्म करना लक्ष्य हो गया है। टेलीविजन देखने वालों की संख्या घटी है। रेडियो के स्रोता अब नहीं रहे। अमीन सयानी की आवाजें, बिना का गीतमाला की अब यादें रह गयी हैं। विकास और गति सोशल मीडिया में देखी जा सकती है।
मैंने कहा कि आज गांधी जयंती मनाना है। उन्होंने कहा कि रावण दहन भी तो करना है। हां, दोनों कर लेंगे। इतने में उन्होंने कहा कि तुम्हारे सोशल मीडिया पर रील प्रसारित हो रही है जिसमें रावण के साथ मेरा संघर्ष दिखाया जा रहा है। उन्होंने लाचारगी भरी आवाज में कहा… ठीक है, जैसा भी है धर्म की स्थापना और अहिंसा होनी चाहिए। सत्य की विजय होनी चाहिए। मैं धर्म, अहिंसा, सत्य को लेकर परेशान हो गया।
उन्होंने पूछा कि महिलाओं की क्या स्थिति है? महिलाओं की स्थिति अच्छी है। अब किचन में मिक्सी आ गयी है, उन्हें मसाला नहीं पिसना होता है। गैस सिलेंडर किचन में है, अब लकड़ी जला कर धुआं में खाना नहीं पकाना पड़ता है। वाशिंग मशीन आ गयी है, कपड़े धोने के तीन घंटे उनके बच गये हैं। स्कूटी घर में है और ब्यूटी पार्लर भी शहर में कई हैं।
उन्होंने तिरछी नजरों से देखा। मैं चुप हो गया। उन्होंने कहा कि मैं नारी शक्ति की आजादी और अधिकारों की बात कर रहा हूं। मैं बोला जी, अब कुछ ही दिनों की बात है। पीड़ित पुरूषों के अधिकारों के लिए महिलायें आगे आने वाली हैं। तलाक के बाद उन्हें अच्छा कम्पसेशन मनी और गुजारा भत्ता मिल जा रहा है। उन्होंने टोकते हुए कहा कि हमें टूटता परिवार नहीं देखना है। मैंने कहा कि अब आजादी न्यूक्लियर फेमिली में हैं।
उन्होंने डांटते हुए कहा कि रखो अपनी आजादी। इतने मैं भी डरने लगा कि कहीं कोई मेरा वीडिया तो नहीं बना रहा है। उन्होंने कहा कि अब गांधीचौक आ गया है। तुम भी निकलो! देख लिया तुम्हारा 75 वर्ष….। नींद की थकान और स्वप्न संवेदनाओं के साथ पीछा कर रहे थे, ठंड लगी और मैं अपनी निद्रा से बाहर निकल आया।
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