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रावण तुम फिर आना…

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डॉ. अजय कुमार तिवारी
      डॉ. अजय कुमार तिवारी

रात को टहलते-टहलते मैं पीजी कॉलेज मैदान में पहुंच गया। वहां बैठा ही था तो अचानक एक तेजवान पुरूष मेरी बगल आ कर बैठ गया। मैं उसकी ओर देखता… उससे पहले उसने मुझसे पुछा… और पंडित यहां क्या कर रहे हो?
उसका जवाब सुन कर मैं चौंक गया। एहसास हुआ कि ये मुझे पहचानते भी हैं और मेरी जैविक जाति को जानते भी हैं। मैं अंतर्मन में स्मरण करते हुए कहा कि नवरात्रि है, लोगों की खुशियां अपने चरम पर पहुंच चुकी है। अब विजय दशमी अर्थात दशहरा आने वाला है। हंसते हुए सवाल किया तो तुम रावण को जलाने आये हो? रावण दहन करोगे?

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मैं उनके सवालों से हतप्रभ था और उनका विश्वास मुझे बार-बार विचलित कर रहा था। इतने आत्मविश्वास के साथ किया गया सवाल परेशान करने लगा।
मैंने कहा कि कल विजयदशमी है तो आना ही पड़ेगा, परम्परा है तो निर्वहन करेंगे।
सामने से तीखे सवालों की बौछार होने लगी। मैं एक-एक सवालों का सामना करता तब तक दूसरा और प्रचण्ड।
रावण में क्या बुराई थी? कभी सोच कर देखा?
मैंने कहा हां… रावण में बुराई थी। वह मां जानकी का अपहरण किया था।
उसने बड़ी चतुराई से जवाब दिया। आपने कभी सोचा जो कन्या पांच वर्ष की उम्र में पिनाक उठा सकती है, जिस पिनाक को बड़े-बड़े राजा, बलशाली नहीं उठा सके। उस मां जानकी का अपहरण कैसे कर सकता था?
मैं दूसरा सवाल पूरी तैयारी के साथ किया। यह सच है कि मां जानकी देवी थीं लेकिन आपने चोरी- छल से साधु के वेश में देवी मां सीता को लंका ले गये।
जवाब में सचाई नजर आयी। यह सच है कि मैं साधु वेश में सीता को ले गया लेकिन मैं रावण के रूप में भी ऐसा कर सकता था। रावण के रूप में और साधु के वेश में मां सीता के प्रति नजरिया बदल जाता है।

मैं लगातार तीखे सवालों से परेशान होने लगा और अपनी हकीकत भी सामने आ गयी। मुझे लगा कि अब दोनों ओर से सवाल हों।
वर्तमान में स्त्रियां की हालत, अपहरण तो बहुत ज्यादा है? सोनागाछी, जीबी रोड तो अत्याचार, बलात्कार के अड्डे बन गये हैं? उसका जवाब बहुत ही मार्मिक और सच था। हमारा उद्देश्य परोक्ष रूप से धर्म की स्थापना था। मां सीता, प्रभु श्रीराम भी यही चाहते थे? जो त्रेता में हुआ। वर्तमान में स्त्रियों के प्रति अपराध उसे वस्तु, भोग्या बना कर हो रहा है। त्रेता के समाज का उद्देश्य और वर्तमान समाज का उद्देश्य अलग-अलग है।

आपने मां जानकी के अपहरण के लिए मारिच का उपयोग किया?
तेज और तिलमिलाहट दोनों चेहरे पर आ गयी। यह सच है कि मारिच का उपयोग हुआ। मां जानकी और प्रभु श्रीराम भी जानते थे कि सोने का हिरन नहीं होता है लेकिन यह आस्था का विषय था जो पूरा हुआ। मारिच को भी सद्गति मिली?
क्या मां सीता को अपनी अशोक वाटिका में कैद कर के रखना उचित था?

देखिये ये स्त्री मर्यादा और उसकी आजादी का सवाल है। लैंगिक समानता और महिला अधिकार का भी ख्याल रखा गया। जानकी को अशोक वाटिका में सुरक्षित रखा और उनकी पहरेदार भी महिलायें ही थीं। उनको मैंने अपने महल में नहीं ले गया और कभी भी मिलने गया तो मंदोदरी के साथ था। आप जब अपनी पत्नी के साथ किसी दूसरी महिला से मिलेंगे तो पूरी मर्यादा कायम रहेगी। मैंने लंका में स्त्री मर्यादा का पालन किया।

मां सीता शक्ति थीं। वह नहीं चाहतीं, तो उन्हें लंका नहीं लाया जा सकता था।
अब धीरे-धीरे पारिवारिक सवालों पर हम दोनों आ गये। आपने अपने भाई विभीषण को अपमानित करके लंका से निकाल दिया? यह भाई के मर्यादा और साथ निभाने का सवाल है। श्रीराम के साथ लक्ष्मण हमेशा रहते हैं। मेरे सभी भाइयो में सिर्फ विभीषण ही हमें छोड़ गया। उसका भी कहना सही था और मैंने प्रभु श्रीराम से बैर लिया है। इसका परिणाम भी सुखद मिला। प्रभु श्रीराम के हाथों राक्षसों को सद्गति मिलती है। विभीषण का राज्याभिषेक प्रभु श्रीराम करते हैं। सबसे बड़ी बात है कि विभीषण भी सात चिरंजीवियों में हैं।

सामने से जवाबी कार्रवाई तेज हो गयी। अब आप बताओ कि जिसने रावण संहिता लिखी हो, जिसने शिवतांडव से महादेव की आराधना की हो, जिसने किसी दूसरी नारी पर अत्याचार नहीं किया हो, जिसने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना करायी हो, यह जानते हुए कि उस युद्ध का परिणाम भी लंका विजय हो… तो ऐसे रावण का दहन…? चलो! एक बार सोचना कि रावण के अवगुण, बुराई, अत्याचार ज्यादा थे कि अब तुम्हारे बीच?

मैं निरूत्तर हो गया। फिर पूछा… बताना कि जो लोग दहन के लिए आये हैं क्या वे मर्यादा पुरूषोत्तम की मर्यादा के हजारवें भाग का पालन करते हैं? उनका आचरण मर्यादित है? यदि आचरण मर्यादित होता तो एक बार का दहन ही पर्याप्त होता। फिर जोर से ठहाको लगाते हुए बोला, मत परेशान होइये… इन्द्रदेव बारिश कर देंगे।  जलूं या ना जलूं, दहन हो या ना हो। भीग कर अवश्य ही गीला हो जाउंगा। गीलापन और बारिश की याद आते ही जोर से ठंड लगी और नींद खुल गयी।

 

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