



डॉ. अजय कुमार तिवारी
Parijat: पारिजात जब तुम आते हो तो मानसून की विदाई हो रही होती है। बारिश की बूंदे तुम्हारा स्वागत करके लौट चुकी होती हैं। तुम्हारे आने से पहले पितृपक्ष रहता है जो पितरों तर्पण के लिये है। शक्ति की भक्ति से सरोबार नवरात्र में जब तुम्हारा आगमन होता है, तो फूलों की सुगन्ध चहुुंओर फैल चुकी होती है। शीलत मंद सुगंध बयार नया जीवन देता है। पारिताज तुम रात को सुगन्ध के साथ आते हो और सुबह होते-होते बिखर जाते हो।
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समुद्र मंथन की याद दिलाता है पारिजात
पारिजात तुम्हें हरसिंगार नाम मिला है, जिसका तात्पर्य है हरि का सिंगार। पारिजात तुम देश के प्रत्येक कोने में अपनी खूशबू बिखेरते हो। तुम्हें संस्कृत में पारिजात, शेफालिका भी कहते हैं। अंगेजी में तुम्हारा बहुत ही प्यारा नाम है नाइट जेस्मिन। विरासतों के रूप में उत्तर प्रदेश में धरोहर बन चुके हो। यहां दुर्लभ प्रजाति के पारिजात के चार वृक्षों में से हजारों साल पुराना दो पेड़ वन विभाग इटावा के परिसर में हैं जो पर्यटकों को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन की याद दिलाते हैं।
1. ऐसी मान्यता है कि पारिजात के पौधे की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी जिसे इंद्र ने अपनी वाटिका में रोप दिया था। हरिवंश पुराण में पारिजात और फूलों का वर्णन मिलता है।
2. पारिजात के फूलों को लक्ष्मी पूजन के लिए प्रयोग किया जाता है लेकिन केवल उन्हीं फूलों को इस्तेमाल किया जाता है, जो अपने आप पेड़ से टूटकर नीचे गिर जाते हैं।
3. पारिजात के फूलों की सुगंध जीवन से तनाव हटाकर खुशियां से सराबोर करता है। इसकी सुगंध आपके मस्तिष्क को शांत कर देती है।
4.पारिजात के फूल सिर्फ रात में ही खिलते हैं और सुबह होते-होते सब जमीन पर बिखर जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि पारिजात के फूल जिसके भी घर-आंगन में खिलते हैं, वहां हमेशा शांति और समृद्धि होती है।
5. हृदय रोगों के लिए पारिजात का प्रयोग बेहद लाभकारी है। इसके 15 से 20 फूलों या इसके रस का सेवन करना हृदय रोग से बचाने का असरकारक उपाय है। पारिजात के फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है।
सत्यभामा, रूक्मिणी और श्रीकृष्ण से जुड़ा है पारिजात
पौराणिक मान्यता के अनुसार पारिजात के वृक्ष को स्वर्ग से लाकर धरती पर लगाया गया था। नरकासुर के वध के पश्चात एक बार श्रीकृष्ण स्वर्ग गये और वहां इन्द्र ने उन्हें पारिजात का पुष्प भेंट किया। ऐसी भी कहानी मिलती है कि देवपुष्प के लिए श्रीकृष्ण ने इंद्र को पराजित किया और पारिजात को धरती पर लाया। पारिजात के पुष्प को श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी को दे दिया। देवी सत्यभामा को देवलोक से देवमाता अदिति ने चिरयौवन का आशीर्वाद दिया था।
नारदजी आते हैं और सत्यभामा को पारिजात पुष्प के बारे में बताते हैं। पारिजात के प्रभाव से देवी रुक्मिणी भी चिरयौवन हो गई हैं। यह जान सत्यभामा क्रोधित हो गयीं और श्रीकृष्ण से पारिजात वृक्ष लेने की जिद्द करने लगी। ऐसी भी मान्यता है कि दोनों की जिद के सामने सत्यभामा को श्रीकृष्ण पारिजात का पौधा देते हैं और रूक्मिणी का वचन देते हैं कि पारिजात का फूल तुम्हारे आंगन में गिरेगा। इस तरह पारिजात दोनों के आंगन में आ गया।
जब भगवान कृष्ण ने पारिजात के वृक्ष को अपने साथ धरती पर ला रहे थे। तब देवराज इन्द्र ने पारिजात के पौधे को श्राप दिया कि इस पेड़ के फूल सिर्फ रात में खिलेंगे और इस पेड़ पर कभी फल नहीं आएगा।
परिजात से दूर होता है वास्तु दोष
पारिजात का वृक्ष घर में लगाने से वास्तु दोष दूर होता है और घर में सम्पन्नता आती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार इसे उत्तर पूर्व दिशा में लगाना सबसे अच्छा होता है। मंदिर के पास पारिजात का पौधा लगाना ज्यादा फलदायी होता ह। इसे लगाने से घर में धन धान्य की कमी नहीं होती है। मानसिक तनाव भी दूर हो जाता है। वहीं पौधे को दक्षिण दिशा में लगाना शुभ नहीं माना जाता है।
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