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Deadly Journey: जानलेवा होता है अमेरिका जाने वाला ये रास्ता, फिर भी नहीं डिगता हौसला…

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Deadly Journey from India to America: अमेरिका में हाल ही में सत्ता परिवर्तन हुआ और जो बाइडन के स्थान पर डोनाल्ड ट्रंप से देश की कमान संभाली। अमेरिकी सत्ता पर काबिज होते ही ट्रंप ने कई अहम फैसले लिए। साथ ही पूर्व राष्ट्रपति बाइडन के कई फैसलों को पलट भी दिया है। इनमें से एक फैसला अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे लोगों के लिए काल बन गया है। दरअसल, ट्रंप प्रशासन अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे लोगों को वापस उनके मुल्क भेज रहा है। इसी कड़ी में  बीते पांच फरवरी को 104 भारतीयों  से भरा अमेरिकी वायुसेना का एक विमान अमृतसर हवाई अड्डे पर उतरा।

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104 भारतीयों को अमेरिका ने किया डिपोर्ट

Dangerous journey from India to America

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस विमान ने टेक्टास से सीधे अमृतसर के लिए उड़ान भरी थी। इस विमान से भारत आने वाले लोगों में अधिकतर पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के थे। हालांकि इस लेख में हम ट्रंप के फैसले के बारे में बात नहीं करेंगे, बल्कि ये जानने की कोशिश करेंगे कि अमेरिका में अवैध रूप से दाखिल होने की लिए लोग किस-किस तरह की चुनौतियों का सामना करते हैं, इसमें कितना खर्च आता है और ये कितना रिस्की होता है। साथ ही ये भी जानेंगे कि अमेरिका जाने के डंकी रूट क्या हैं।

आसान नहीं होता डंकी रूट से अमेरिका पहुंचना

अमेरिका से वापस आये लोगों ने जिस तरह से अपनी आपबीती सुनाई, उससे साफ है कि डंकी रूट से अमेरिका पहुंचना बिलकुल भी आसान नहीं है।  इसके लिए लोगों को सैकड़ों मील पैदल चलना पड़ता है। इस दौरान उन्हें बर्फीले मौसम, घने जंगलों, जहरीले सांपों, बिच्छुओं और लुटरे का भी खतरा रहता है।  साथ ही भूख-प्यास का भी सामना करना पड़ता है। अमेरिका से वापस भेजे गये पंजाब के 31 लोगों में से 29 ने पुलिस और मीडिया को अपनी आपबीती बताई, जो बेहद हैरान करने वाली थी।

अपमानजनक तरीके से भेजा वापस 

वैसे तो अमेरिका जाने और वहां खूब पैसा कमाने का सपना तो बहुत से लोग देखते हैं, लेकिन जिनके सपने सच होते हैं उनका परसेंटेज काफी कम होता है। इनमें भी कुछ ऐसे लोग होते हैं जो डंकी रूट से अमेरिका प्रवेश करते हैं। माने बिना वैध दस्तावेज के वे अमेरिका जाते हैं, लेकिन अब ऐसे लोग मुश्किल में फंस गये हैं। अमेरिका जाने के लिए उन्होंने जितना भी पैसा खर्च किया था, वह डूब गया है, क्योंकि अब अमेरिका उन्हें देश से बाहर निकाल रहा  है, वह भी बेहद अपमानजनक तरीके से। वहां अमेरिकी अधिकारियों ने उन्हें पकड़ा, उनके हाथों में हथकड़ी लगाई और कई किलो मीटर पैदल चलाकर उन्हें सैन्य विमान से वापस भेजा।

अरसे से इस्तेमाल हो रहे हैं ये डंकी रूट

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पुलिस को दिए गये बयानों में मैक्सिको के रास्ते अमेरिका में दाखिल होने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई उसका पूरा ब्यौरा दिया गया है। उनके बयानों ने साफ़ कहा गया है कि वे सभी कानूनी दस्तावेजों के साथ भारत से निकले थे। अमेरिका से वापस आये एक शख्स ने बताया कि दक्षिण अमेरिका पहुंचने के रास्ते में उनका पड़ाव वे देश थे जहां के वीजा नियम आसान हैं। पुलिस की दिए गये ब्यौरे के मुताबिक, इन 29 लोगों में से आठ दुबई में उतरे, आठ स्पेन में, पांच इटली में, चार ब्रिटेन में और एक-एक ब्राजील, गुयाना, सूरीनाम और फ़्रांस में। ये वे डंकी रूट है जो बेहद खतरनाक माने जाते हैं। ये रूट कई बार जानलेवा भी साबित होते हैं। और तो और ये रूट आज से नहीं बल्कि अरसे से इस्तेमाल किये जा रहे हैं।

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सबसे अधिक भारतीय पहुंचते हैं अमेरिका

अब ट्रंप के भारतीयों को वापस भेजने के फैसले के बाद ये जोखिम भरे रूट एक बार फिर से सुर्ख़ियों में आ गये हैं। प्यू रिसर्च सेंटर के आंकड़ों पर गौर करें तो महज चार साल में अमेरिका में अवैध रूप से दाखिल होने वाले भारतीयों की संख्या में जबर्दस्त इजाफा हुआ है। साल 2018-2019  ये आंकड़ा 8,027 था, जो 2022-2023 में बढ़कर 725,000 हो गया है। आइए जानते हैं कैसे होता है ‘डंकी रूट’ से सफर। लैटिन अमेरिका के बाहर भारत एकमात्र ऐसा देश हैं जहां से सबसे अधिक लोग अवैध तरीके से अमेरिका पहुंचते हैं।  2011 से अब तक अमेरिका में अवैध रूप से दाखिल होने वाले भारतीयों की संख्या में 70 फीसदी का इजाफा हुआ है। ऐसा यूएस कस्टम्स एंड बॉर्डर प्रोटेक्शन के आंकड़े में दर्ज है।

40 से एक करोड़ तक होता खर्च

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इस महीने यानी फरवरी में अमेरिका से निकाले गये भारतीयों के लिए अमेरिका जाने के सफर की शुरुआत सबसे पहले एजेंट से होती है,  जो उन्हें अमेरिका में दाखिला कराने का वादा करता है उसके लिए वह 40 लाख या उससे ज्यादा कई-कई से तो करोड़ों की रकम वसूलता है। एक बार कॉन्ट्रैक्ट सेफ हो जाने के बाद जिसे अमेरिका जाना होता है, उसे सबसे पहले उस देश ले जाया जाता है जहां का वीजा आसानी में मिल जाता है। जैसे  ब्राजील, इक्वाडोर, बोलीविया या गुयाना। कुछ मामलों में एजेंट दुबई से मैक्सिको के लिए सीधे वीज़ा की व्यवस्था कर लेते हैं। इसके बाद उन्हें लैटिन अमेरिका ले जाया जाता है।

घने और खतरनाक जंगलों से करते हैं सफर

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हालांकि, लैटिन अमेरिका के किसी भी देश में पहुंचना पहला और वास्तव में सबसे आसान कदम होता है, लेकिन यहीं से प्रवासियों के दुर्गम सफर की शुरुआत होती है। खतरनाक जंगलों से होते हुए अमेरिका-मेक्सिको सीमा तक की यात्रा की जाती है। अवैध प्रवासी कोलंबिया से पनामा सिटी तक पहुंचने के लिए लगभग 100 किमी तक का रास्ता घने जंगलों से तय करते हैं। कोलंबिया-पनामा बॉर्डर पर फैला जंगल बहुत बड़ा है।आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल, लगभग 250,000 लोगों ने डेरियन गैप को पार किया था। यात्रा मार्ग के बारे में विस्तार से बताते हुए निर्वासितों में से एक गुरविंदर सिंह कहते हैं कि उन्हें गुयाना से ब्राज़ील तक कार से ले जाया गया, वहां से वे बोलिविया, पेरू और इक्वाडोर से होते हुए बस से कोलंबिया पहुंचे।

100 किमी तक चलना पड़ता है पैदल

बता दें कि डेरियन गैप का नाम दक्षिण और मध्य अमेरिका को जोड़ने वाले पैन-अमेरिकन हाईवे में बने ‘गैप’ से पड़ा है।  यहां की जमीन काफी ऊबड़-खाबड़ है जिससे यहां किसी भी तरह का निर्माण होना लगभग असंभव है। ऐसे में अमेरिका जाने वाले प्रवासी आम तौर पर इन्हीं जंगलों से होते हुए जाते हैं। इस दौरान वे पांच से नौ दिन तक 106 किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हैं। प्रवासियों की ये यात्रा कोलंबिया से शुरू होकर पनामा बॉर्डर के पार पश्चिम की ओर बढ़ते हुए बाजो चिकीटो तक जाती है। यहां प्रवासियों को एक रिसेप्शन सेंटर में रोका जाता है। इसके बाद वे वहां से उत्तर की ओर अपनी आगे की यात्रा शुरू करते है, यहां से वे सैन विसेंट या फिर लाजस ब्लैंकास जैसे अन्य सेंटर्स पर पहुंचते हैं

फर्जी पहचान पत्र से मिलती है एंट्री

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गुरुविंदर बताते हैं कि कोलंबिया से कैपुरगना द्वीप तक के सफर का शुरूआती पॉइंट डेरियन ट्रेक हैं। यहां उन्हें नाव लाया गया। इसके बाद प्रवासी वेलकम सेंटर तक पहुंचने से पहले वे कई दिनों तक डेरियन गैप के घने और खतरनाक जंगलों में पैदल चले। सिंह ने बताया कि डंकी रूट को अपनाने वालों को डंकर्स कहा जाता है, यहां से सब्जी की गाड़ियों में लादकर उन्हें पनामा सिटी ले जाया  गया, जहां से कोस्टा रिका, निकारागुआ, होंडुरास और ग्वाटेमाला शहरों से होते हुए बस से यात्रा करते हुए आखिर में मैक्सिको-यूएस सीमा पर पहुंचे। गुरविंदर बताते हैं कि एजेंट द्वारा उपलब्ध कराये गये फर्जी पहचान पत्र में माध्यम से उन्हें मूसा के रास्ते मैक्सिकन बॉर्डर पार कराया गया। इसके बाद वे बस से मैक्सिकन शहर सैनकोबा और तिजुआना पहुंचे और फिर अमेरिकी सीमा में दाखिल हुए।

 

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