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Trade War: चीन के इस कदम से कांपे कई बड़े देश, अमेरिका भी शामिल

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नई दिल्‍ली। Trade War: अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ट्रेड वॉर से अब पूरी दुनिया प्रभावित होती हुई नजर आ रही है। दरअसल, चीन ने 4 अप्रैल को रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REE) और मैग्नेट के एक्सपोर्ट प्रतिबन्ध लगा दिया है। चीन द्वारा यह कदम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ के जवाब में उठाया गया है। ड्रैगन के इस फैसले से दुनिया के कई देशों में आरईई की सप्लाई में भारी कमी आ सकती है।

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आरईई के निर्यात पर लगाई रोक

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‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ की एक रिपोर्ट पर गौर करें तो, चीन ने अभी तक दूसरे देशों के लिए लाइसेंसिंग सिस्टम नहीं बनाया है। ऐसे में बंदरगाहों पर शिपमेंट रुक गई है। हालांकि, चीन के निशाने पर अमेरिका है, लेकिन, इसका असर और भी कई देशों पर भी पड़ रहा है। चीन ने यिट्रियम और डिस्प्रोसियम समेत करीब आधा दर्जन आरईई के निर्यात पर रोक लगा दी है। इनका इस्तेमाल जेट इंजन, रक्षा उपकरण और आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स बनाने में होता है।

जापान के पास है एक साल का स्टॉक 

चीन दुनिया का सबसे बड़ा आरईई उत्पादक है। यही वजह है कि, बंदरगाहों पर शिपमेंट रोके जाने से दुनिया भर में इसकी आपूर्ति की कमी हो सकती है। इसका अमेरिका, जापान, वियतनाम और जर्मनी जैसे प्रमुख आरईई उपभोक्ता देशों पर बुरा असर पड़ेगा। कुछ जापानी कंपनियों के पास एक साल से ज्यादा का स्टॉक है। ऐसे ने उन्हें तत्काल समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा। चीन ने दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रीय विवाद के कारण 2010 में जापान को आरईई का निर्यात सात सप्ताह के लिए रोक दिया था।

पहले से थी आशंका

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वाशिंगटन स्थित सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (सीएसआईएस) के विशेषज्ञों का कहना है कि आरईई निर्यात पर प्रतिबंध की संभावना पहले से ही थी। उन्होंने कहा, ‘कई नीतियों से यह स्पष्ट था कि आरईई निर्यात पर प्रतिबंध लगाया जाने वाला था। चीन ने 2010 में मछली पकड़ने वाले ट्रॉलर विवाद के चलते जापान को निर्यात रोककर दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (REE) को एक रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। इसके बाद, 2023 से 2025 के बीच, चीन ने अमेरिका को गैलियम, जर्मेनियम, एंटीमनी, ग्रेफाइट और टंगस्टन जैसी महत्वपूर्ण सामग्रियों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना शुरू किया।

भारत नहीं होगा प्रभावित

कई देश दुर्लभ मृदा तत्वों के मामले में आत्मनिर्भर बनने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन, विशेषज्ञों का मानना ​​है कि, चीन पर निर्भरता कम होने की संभावना नहीं है। चीन के पास REE को परिष्कृत करने के लिए जरूरी तकनीक है। भारत पर इसका असर कम रहने की उम्मीद है। भारत में REE की खपत कम है। हालांकि, हाल के वर्षों में मांग बढ़ी है।

भारत ने 2023-24 में 2,270 टन REE का आयात किया 

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खान मंत्रालय के अनुसार, भारत ने 2023-24 में 2,270 टन दुर्लभ पृथ्वी तत्व (REE) का आयात किया, जो 2019-20 में 1,848 टन था, इस प्रकार 23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसमें से 65 प्रतिशत आयात चीन से और 10 प्रतिशत हांगकांग से किया गया। भारत में खनन और रिफाइनिंग का कार्य सीमित है, जो मुख्य रूप से सरकारी कंपनी IREL लिमिटेड द्वारा किया जाता है, जिसकी वार्षिक क्षमता 10,000 टन से अधिक है। इसके विपरीत, चीन ने अकेले 2023 में 2 लाख टन से अधिक REE का शोधन किया।

चीन ने अमेरिका की योजना का विरोध किया

एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन के विदेश मंत्रालय ने समुद्र तल से धातु निकालने की अमेरिका की योजना का विरोध किया है। इनमें से कई धातुएं दुर्लभ मृदा यानी REE हैं। ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ के अनुसार, ट्रंप प्रशासन एक कार्यकारी आदेश पर काम कर रहा है। इससे प्रशांत महासागर के समुद्र तल से गहरे समुद्र में मौजूद धातुओं को संग्रहित किया जा सकेगा। इसका उद्देश्य बैटरी खनिजों और दुर्लभ मृदाओं के लिए चीन पर निर्भरता कम करना है।

अंडमान सागर में सात समुद्री ब्लॉकों की नीलामी

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रिपोर्ट के अनुसार, चीन के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “अंतर्राष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र में खनिज संसाधनों की खोज और दोहन संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण के ढांचे के भीतर किया जाना चाहिए।” इसका मतलब यह है कि, चीन चाहता है कि, समुद्री क्षेत्र से खनिज निकालने के लिए अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन किया जाए। पिछले साल नवंबर में भारत ने अंडमान सागर में सात समुद्री ब्लॉकों की नीलामी शुरू की थी। इनका इस्तेमाल खोज और खनन के लिए किया जाएगा। इन ब्लॉकों में पॉलीमेटेलिक नोड्यूल और क्रस्ट हैं। इनमें भारी दुर्लभ धातुएं हो सकती हैं।

 

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