



- नेपाल की जमीन पर चीन का कब्जा
- लिपुलेख तो कभी फेसबुक-इंस्टा पर बवाल
नई दिल्ली। Uproar in Nepal: भारत के पड़ोसी मुल्क नेपाल में आज उस वक्त वबाल मच गया,जब सरकार ने फेसबुक, एक्स और इंस्टाग्राम समेत कुल 26 सोशल मीडिया प्लेटफार्म को बैन करने का आदेश जारी किया। इस आदेश से नाराज वहां की जनता सड़क पर उतर आई और जनरेशन जेड के प्रदर्शनकारी संसद में घुस गये। दरअसल, प्रतिबंधित किये गये प्लेटफार्म्स को सात दिन के अंदर सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय में अपना रजिस्ट्रेशन कराना था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया, जिससे केपी शर्मा ओली की सरकार ने इन प्लेटफार्म्स पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
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चीन कर रहा नेपाल को अस्थिर
बताया जा रहा है कि, नेपाल सरकार ने इन कंपनियों आदेश दिया था कि वे 28 अगस्त से सात दिन के अंदर रजिस्ट्रेशन करा लें, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सकीं और बुधवार को उनकी सात दिन की समय सीमा समाप्त हो गई। इसके बाद मंत्रालय की तरफ से कंपनियों पर प्रतिबन्ध लगाने संबंधी आदेश पत्र जारी कर दिया गया। इसके साथ ही ये भी कहा गया कि नियमों का पालन न करने पर प्लेटफार्मस को निलंबित करने की कार्रवाई की जा सकती है। सरकार के इस आदेश के जारी होते ही देश भर में बवाल मच गया। यहां की जनता खासकर युवा वर्ग सड़क पर उतर आया। उधर, इस विरोध प्रदर्शन को लेकर एक्सपर्ट्स का कहना है कि, ये सब चीन करा रहा है, चीन आये दिन नेपाल को अस्थिर करने की साजिश रचता रहता है। आइए जानते हैं इसके पीछे की असली वजह क्या है और इससे चीन को क्या फायदा हो सकता है।
सोशल मीडिया बैन से बवाल
एक रिपोर्ट के अनुसार, मंत्रालय द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि, माननीय सर्वोच्च ने कोर्ट की अवमानना के एक मामले में नेपाल सरकार को निर्देश देते हुए एक आदेश जारी किया है, जिसमें साफ़ तौर पर कहा गया है कि, सभी सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफार्म ‘चाहे वह घरेलू मूल के हों या विदेशी मूल के’ संचालन से पहले उनका पंजीकरण कराना होगा और संबंधितअधिकारियों द्वारा अनिवार्य रूप से अवांछित सामग्री का मूल्यांकन और निगरानी करना होगा।
चीनी प्लेटफार्म्स का हुआ रजिस्ट्रेशन
बता दें कि, नेपाल में अब तक वीटॉक, वाइबर , निबांज और टिकटॉक जैसे प्लेटफॉर्म अपना पंजीकरण करा चुके हैं। वहीं, टेलीग्राम और ग्लोबल डायरी रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया में हैं, लेकिन मेटा (फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप की मूल कंपनी), अल्फाबेट (यूट्यूब), एक्स, रेडिट या लिंक्डइन समेत कई कंपनियां हैं जिन्होंने अभी तक रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया तक नहीं शुरू की। यहां तक की इन कंपनियों की तरफ से अभी तक आवेदन पत्र तक नहीं जमा किया गया है।
नेपाली अधिकारियों का कहना है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मस द्वारा पंजीकरण प्रक्रिया पूरी करने और मंत्रालय द्वारा जारी किये गये नियमों का पालन करने के बाद सेवाएं फिर से शुरू हो सकती हैं। यहां गौर करने वाली बात ये है कि इनमें से अधिकतर प्लेटफॉर्म अमेरिकी हैं और अभी तक जिन प्लेटफार्म्स का पंजीकरण हुआ है और जिनका संचालन करने की मंजूरी मिली है, वे सब चीन के हैं।
लिपुलेख पर जिनपिंग का जवाब
गौरतलब है कि, ड्रैगन नेपाल में अपना वजूद कायम करके जब तब भारत के खिलाफ साजिश रचने की योजना बनाता रहता है, लेकिन हाल ही में भारत और नेपाल के बीच हुए लिपुलेख विवाद में पड़ने से उसने साफ इंकार कर दिया। नेपाल के विदेश सचिव अमृत बहादुर की मानें तो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने लिपुलेख विवाद पर साफ़ कहा था कि, ये भारत और नेपाल का मसला है और इसे उन दोनों देशों को आपसी बातचीत से सुलझाना चाहिए। बता दें कि, लिपुलेख दर्रे पर भारत अपना हक जताता है और नेपाल अपना। साल 2020 में नेपाल द्वारा जारी किये गये नए नक्शे में लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी को देश का अहम हिस्सा बताया गया था। वहीं भारत लंबे समय से इन पर अपना कब्जा मानता रहा है।
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चीन परस्त हैं नेपाली पीएम
बीते 31 अगस्त से एक सितंबर के बीच हुए शिंघाई शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए चीन पहुंचे नेपाल के पीएम केपी ओली शर्मा ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सामने लिपुलेख का मुद्दा उठाया था और कहा था कि यह इलाका नेपाल का हिस्सा है, लेकिन भारत इस पर अपना कब्जा मानता है। दरअसल, इससे पहले यानी 19 अगस्त को भारत और चीन ने लिपुलेख पास को ट्रेड रूट के तौर पर फिर से खोलने का फैसला किया था, जिस पर नेपाल ने विरोध जताया था। यही वजह है कि नेपाली पीएम ने जिनपिंग के सामने भी अपनी आपत्ति दर्ज कराई। मालूम हो कि मौजूदा नेपाली पीएम ओली को चीन परस्त माना जाता है।
कमजोर हुए भारत-नेपाल संबंध
भारतीय वैश्विक परिषद, सप्रू हाउस दिल्ली पर छपी एक रिसर्च में कहा गया है कि, साल 2015 में नेपाल में जब भूकंप आया था और बड़े पैमाने पर वहां तबाही मची थी। इसके बाद नेपाल के नए संविधान का ऐलान हुआ था। इन सबके साथ और भी कई घटनाएं घटी थीं, जिससे भारत-नेपाल के व्यापारिक रिश्ते प्रभावित हुए थे। वहीं चीन और नेपाल के संबंध तेजी से विकसित हुए। साल 2016 में चीन का नेपाल के साथ पारगमन और परिवहन समझौता (TTA) करने का भी मार्ग प्रशस्त हुआ। इस समझौते के बाद चीन ने नेपाल को तीसरे देश के साथ व्यापार करने के लिए चीनी बन्दरगाह भी खोल दिए, जो नेपाल की स्थलरुद्ध (लैंडलॉक) स्थिति को देखते हुए बेहद अहम फैसला था।
चीन की मदद से बना पोखरा हवाई अड्डा
इस समझौते के बाद चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के लिए रास्ता बनाया गया, जिस पर 2017 में दोनों देशों के बीच हस्ताक्षर हुए। इसके अलावा, सिंघुपालचोक में जिला अस्पताल और नेपाल सशस्त्र पुलिस बल अकादमी के पुनर्निर्माण के लिए नेपाल सरकार को अनुदान देने के लिए चीन की सरकार द्वारा की गई मदद ने चीन की भागीदारी को विशेष रूप से बीआरआई के तहत कनेक्टिविटी एवं बुनियादी ढांचे के लिए नौ परियोजनाओं पर हस्ताक्षर के साथ बाहरी समर्थन से सक्रिय भागीदारी में बदल दिया। इसके बाद 2023 में नेपाल में पोखरा हवाई के निर्माण के दौरान भी चीन के एग्जिम बैंक से 216 मिलियन डॉलर का लोन नेपाल सरकार द्वारा लिया गया और चाइना सीएएमसी इंजीनियरिंग ने इसमें अहम भूमिका निभाई।
नेपाल की जमीन पर चीन का कब्जा
इस एयरपोर्ट को चुनावी रैलियों में बखूबी प्रचारित किया गया और नेपाल की बड़ी प्रगति बताया गया। चीन के वित्तपोषण पर बढ़ती निर्भरता नेपाल की विदेश नीति के व्यवहार को कैसे प्रभावित कर रही है इसे लेकर हाल ही एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें बताया गया है कि नेपाल के सुदूर पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्र हुमला में हाल के वर्षों में चीन ने अतिक्रमण कर लिया है, लेकिन नेपाल बीजिंग से भिड़ने या सार्वजनिक रूप से इस मुद्दे को उठाने से परहेज कर रहा है। नेपाल की ये मौन प्रतिक्रिया चीन पर उसकी निर्भरता सबूत है।
पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र शाह के पक्ष में लगे थे नारे
इससे पहले 2019 में चीन के कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के लगभग 50 नेताओं ने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) के 200 से अधिक नेताओं को शी जिनपिंग विचार-प्रक्रिया पर प्रशिक्षण दिया गया था। इसके साथ ही पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, जिसे बनाने के लिए चीन एग्जिम बैंक से लोन दिया गया था, को भले ही नेपाल की प्रगति के तौर पर दिखाया जा रहा है, लेकिन इस परियोजना की ऋण शर्तें इतनी सख्त हैं कि, नेपाल के लिए चिंता पैदा करने वाली हैं। सोशल मीडिया के खिलाफ नेपाल में उपजे बवाल से पहले इसी साल अप्रैल में भी यहां की राजधानी काठमांडू में जनता सड़कों पर उतर आई थी और पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र शाह के नारे लगा रही थी।
बढ़ जाएगा खतरा
जनता की मांग थी कि नेपाल के राजशाही की वापसी हो और देश की फिर से हिन्दू राष्ट्र घोषित किया जाये। कुल मिलाकर ये कह सकते हैं कि, नेपाल भारत का ख़ास पड़ोसी मुल्क है। अगर वह अस्थिर होता है, तो इसका सीधा असर भारत पर पड़ता है, जिसका फायदा चीन और पाकिस्तान जैसे ताकतें उठा सकती हैं और वहां अपनी जड़ें जमा सकती हैं। बता दें कि, भारत-नेपाल के बीच कुल 5 1751 किलोमीटर लंबी सीमा है, जहां से आतंकी, ड्रग्स और नकली नोटों की सप्लाई का खतरा भारत को हमेशा बना रहता है और अगर यहां चीन और पाकिस्तान की पैठ हो जाएगी तो ये खतरा और बढ़ जायेगा।
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